Saturday, October 26, 2019

पैसे की बेकद्री


वैसे तो कोई भी खुद को कमअक्ल नहीं मानता, लेकिन मौजूदा समय में समाज उसे ही सही अर्थों में पढ़ा-लिखा समझता है जिसे सरकारी नौकरी मिल जाए। उसमें भी योग्यता का सबसे बड़ा पैमाना यूपीएससी का इम्तिहान फतह करके आईएएस-आईपीएस बन जाना है। पिछले कुछ वर्षों से ‘कौन बनेगा करोड़पति’ सीरियल में चयन को भी योग्यता का मानक माना जाने लगा है। ...और अगर किसी ने इस शो में 50 लाख या एक करोड़ रुपये की रकम जीत ली तो फिर कहना ही क्या। तिजोरी भरने के साथ ही उसके ज्ञान का डंका पूरे देश में बजने लगता है। ... मगर अफसोस, केबीसी के गुरुवार के एपिसोड में एक शिक्षिका 10000 पैसे को रुपये में बदलने से कितने रुपयए होंगे, इस सवाल का सही जवाब नहीं दे पाईं और उन्हें लाइफलाइन की मदद लेनी पड़ी। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि आज भारतीय रुपये की कीमत केवल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में ही नहीं गिर रही, आमजन के नित्यप्रति के व्यवहार में भी पैसे की अहमियत खत्म हो गई है। याद आते हैं, बचपन के दिन जब गिनती और जोड़-घटाव-गुणा-भाग की शुरुआती शिक्षा के बाद सबसे पहले पैसे को रुपये में और रुपये को पैसे में बदलने के साथ ही सेकंड, मिनट और घंटा का हिसाब सिखाया जाता था। इसका मकसद शायद यही था कि आने वाले जीवन में अर्थ की उपयोगिता काफी अहम होगी, इसलिए इसकी बारीकी को समझना जरूरी है। वहीं, समय के मोल का मर्म समझाने के लिए इसकी इकाइयों की जानकारी दी जाती थी। जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अर्थ और समय ही हैं। इसके बाद ही किसी चीज का स्थान आता है। इन दोनों को जिसने साध लिया, उसने सब कुछ साध लिया। हमारे बचपन के दिनों में दस पैसे, बीस पैसे, पच्चीस पैसे और पचास पैसे की कौन कहे, एक पैसा, दो पैसे, पांच पैसे का भी महत्व था और यह हमारी कई जरूरतें पूरी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। बीतते हुए समय के साथ सब साथ छोड़ते चले गए। चवन्नी-अठन्नी की कौन कहे, अब तो एक रुपये का छोटा वाला सिक्का लेने में कई दुकानदार नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं। ऐसे में यदि कोई प्रतिभावान होने के बावजूद पैसे को रुपये में बदलने का गणित भूल गया हो तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हां, पैसे की यह बेकद्री दिल को कचोटती जरूर है। 31 August 2019

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