Saturday, October 26, 2019

मातृदेवो भव से सेक्रेट सुपर स्टार तक


उपनिषद में श्रेष्ठजनों की अभ्यर्थना में सबसे पहले कहा गया है-मातृदेवो भव। जिस धरती पर हम जीवन बिताते हैं, उसे भी माता कहा गया है। मां की दूध के अलावा गाय की दूध बच्चों को पोषण प्रदान करती है और सनातन संस्कृति में गाय को भी माता कहा जाता है। पापों से मुक्ति दिलाने से लेकर मोक्ष तक प्रदान करने वाली गंगा को भी ऋषि-मुनियों ने मां का दर्जा दिया है। इन सभी को मां का पर्यायवाची मानकर माता की महिमा को ही स्वीकार किया गया है। गर्भ में भ्रूण के अस्तित्व में आने के साथ ही एक डोर के जरिये मां से नाता जुड़ जाता है, जिसे नाल कहा जाता है। इसी के सहारे गर्भ में शिशु का पोषण होता है। हालांकि जन्म के तत्काल बाद वह नाल काट दिया जाता है, लेकिन मां के साथ संतान का नाभि-नाल संबंध कभी खत्म नहीं होता। तभी तो 80 साल की उम्र में भी चोट लगने पर मुंह से‘उई मां’ ही निकलता है। हमारे पुरुष प्रधान समाज में बेटे को तरजीह दी जाती है। उसे अपेक्षाकृत अधिक सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं, ताकि वह भविष्य में परिवार की जरूरतें पूरी करने लायक बन सके। परिवार की जिम्मेदारी पिता के कंधों पर होती है। मां के पास कोई दौलत नहीं होती, लेकिन वह ममता की अथाह दौलत अपने आंचल में सहेजकर रखती है और अपनी संतान पर इसे लुटाने में कभी गुरेज नहीं करती। यहां तक कि अपने हिस्से का भोजन भी बच्चों को दे देती है। बच्चों की बेहतरी के लिए पति या परिवार के मुखिया के सामने दबी आवाज में ही सही सही, तर्क रखने से पीछे नहीं पड़ती। ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं, जब मां ने बच्चों की पढ़ाई के लिए अपने गहने तक बेच डाले। फिल्म ‘सेक्रेट सुपरस्टार’ में जब नायिका को सम्मान लेने के लिए मंच पर बुलाया जाता है तो वह साफ-साफ कहती है कि इस खिताब की असली हकदार यानी सेक्रेट सुपरस्टार उसकी मां हैं, जिनकी बदौलत उसे यह मंजिल मिल सकी। यह दृश्य देखते हुए सहसा ही आंखें नम हो जाती हैं। महसूस होता है कि सदियां बीत जाने के बाद भी मां के प्रति सम्मान की भावना बरकरार है और जब तक यह सृष्टि है, तब तक कायम रहेगी । 20 January 2018

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