लाली लाली डोलिया में लाली रे दुल्हनिया...
शादी-विवाह का सीजन शुरू हो गया है। इससे जुड़ी यादें बरबस ही दिल को गुदगुदा देती हैं। तो चलिए, इनसे जुड़ी यादों की दुनिया के सफर पर चलते हैं। बचपन में मुझे नवविवाहिता दुल्हन को देखने का बड़ा चाव था। हालांकि इसके पीछे नारी सौंदर्य की झलक देखने की कोई लालसा नहीं थी, बल्कि इसके मूल में एक अलग तरह की मिठास थी। मिठास...? जी हां। घुनामुना की मिठास। घुनामुना कनिष्ठिका (कनगुड़िया) अंगुली की साइज का एक तरह का पकवान है, जिसे गेहूं के आटा में गुड़ मिलाकर फिर उसे तेल में तलकर बनाया जाता है। बिहार के जिस इलाके से मैं आता हूं, वहां जब नई दुल्हन आती है, तो उसे देखने आने वाली महिलाओं को घुनामुना दिया जाता है। घुनामुना का स्वाद मुझे काफी भाता था। इसलिए आस पड़ोस के जिस परिवार में भी लड़के की शादी होती, बड़ी चाची के साथ मैं चला जाता। उनके साथ मुझे भी घुनामुना मिलता, जिसे खाकर असीम संतुष्टि का अहसास होता।
उम्र बढ़ने के बाद यह छूट खत्म हो गई। फिर मित्र या रिश्तेदारों के यहां होने वाले इक्का-दुक्का विवाह में दुल्हन देखने का अवसर मिल पाता। तब मुंहदिखाई देने के बदले मुंह मीठा करने का दस्तूर जरूर निभाया जाता, लेकिन उसमें दुल्हन के साथ आने वाली मिठाइयां-खाजा, लड्डू, बालूशाही आदि ही होते, घुनामुना नहीं। समय का पहिया यूं ही चलता रहा और रोजी-रोटी के चक्कर में घर छूटने के कारण यह सब छूट गया।
15-20 साल बाद अब नई दुल्हनों के दीदार एक बार फिर से होने लगे हैं। गांव-समाज से लेकर रिश्तेदारी तक में जहां भी शादी होती है, जयमाला के साथ ही कोई न कोई दुल्हन की फोटो फेसबुक और व्हाट्सएप पर डाल देता है। ...और सैकड़ों किलोमीटर दूर रहते हुए आभासी तस्वीरों को देखकर ही हम मांगलिक कार्यक्रम में खुद की हिस्सेदारी मान लेते हैं।
चलते-चलते
1990 के दशक की बात है। स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का षष्ठीपूर्ति समारोह के तहत हर तरफ आयोजन हो रहे थे। इस अवसर पर बीबीसी हिन्दी सेवा के Pervaiz Alam परवेज आलम जी ने लता ताई से साक्षात्कार के दौरान पूछा कि आपको कौन सा गीत सर्वाधिक पसंद है? इस पर लता ताई ने सदाबहार फिल्म ‘तीसरी कसम’ का शैलेन्द्र का लिखा यह गीत अपने मधुर स्वर में गुनगुनाया था-
लाली लाली डोलिया में लाली रे दुल्हनिया...पिया के पियारी भोली भाली रे दुल्हनिया....
25 April 2019
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