Friday, August 5, 2011

मूल उद्देश्यों की पटरी से उतरता रेलवे

नए रेल मंत्री ने व्यवस्था सुधारने की बजाय किराया नहीं बढ़ाने पर दिया जोर
हाल ही केंद्रीय मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल में रेल मंत्री बने दिनेश त्रिवेदी ने निकट भविष्य में रेल किराया नहीं बढ़ाने की बात कही है। उनका यह बयान पूर्ववर्ती रेल मंत्रियों की तरह अपनी लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ाने की कवायद ही प्रतीत होता है। ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल चुनाव में लीन हो जाने के कारण लंबे अरसे तक रेल मंत्रालय मुखियाविहीन सा हो गया था। ऐसे में नए रेल मंत्री से रेलवे की व्यवस्थाओं में सुधार की आस लगाए रेलयात्रियों को त्रिवेदी के इस बयान से झटका लगा है।
भारतीय रेलवे का ध्येय वाक्य है 'संरक्षा, सुरक्षा और समय पालनÓ अर्थात् यात्रियों को अपने संरक्षण में सुरक्षित रूप से बिना किसी परेशानी के निर्धारित समय से गंतव्य पर पहुंचाना, लेकिन वर्तमान समय में भारतीय रेल ने अपने मूल ध्येय को पूरी तरह भुला दिया है। वर्तमान समय में रिजर्वेशन के बावजूद आरक्षित कोच में सामान्य टिकट या वेटिंग लिस्ट वालों की भीड़ के कारण बैठना तक मुहाल हो जाता है। जैसे-तैसे बैठ भी गए तो ट्रेन सही-सलामत निर्धारित समय से गंतव्य पर पहुंचा देगी, इसकी कोई गारंटी नहीं होती। पिछले दिनों हुई रेल दुर्घटनाओं तथा ट्रेनों में हुई आपराधिक घटनाओं के कारण यात्रियों के मन में एक अज्ञात भय समाया रहता है। ऐसे में रेल मंत्री
को चाहिए कि वे रेल किराया न बढ़ाने का आश्वासन देने की बजाय सुरक्षित व सुखद रेलयात्रा की गारंटी देने की बात करते। इस गारंटी के लिए तो रेलयात्रियों को किराये में दो-पांच रुपए की बढ़ोतरी भी नहीं खलती।
(जयपुर से प्रकाशित हिंदी दैनिक समाचार पत्र डेली न्यूज में 2 अगस्त को प्रकाशित)

Monday, August 1, 2011

...मोर अंगना नहि बरसे बदरवा

कविकुलगुरु कालिदास ने अपनी कालजयी रचना ' मेघदूतम्Ó में कुबेर के शाप से निर्वासित यक्ष की प्रियतमा की विरह-व्यथा को शब्दों में पिरोकर बादलों की महत्ता को अलग तरीके से रूपायित किया। इसके साथ ही ' मेघदूतम्Ó में 'आषाढ़स्य प्रथम दिवसे...Ó से आषाढ़ आने पर मन के आह्लादित होने का भी बखूबी वर्णन किया। वैशाख-ज्येष्ठ में सूर्य की प्रचंड किरणों के प्रभाव से प्रकृति व अन्य प्राणियों के साथ मानव-मन भी झुलस जाता है और हर किसी की तमन्ना रहती है कि बादल बरसें और मन को हरसाएं। आषाढ़ से यह सिलसिला शुरू होकर सावन आते-आते मन में इतना बस जाता है कि प्रफुल्लित मन हर्ष के झूले पर प्यार की पींगे मारने को हर पल व्याकुल सा रहता है। तभी तो काव्य से लेकर फिल्में तक सावन के स्नेह से अभिसिक्त होकर हमारा मन हर लेती हैं।
खैर, मेरा उद्देश्य न तो कालिदास की प्रशंसा में कसीदे काढऩा था और न ही सावन को शब्दों में सजाने का है। आज तो किसी और ही कारण ने मुझे मैं तो किसी और ही उद्देश्य से आज यहां मुखातिब हूं। बरसों से रात की नौकरी के कारण सोते-जगते उनींदे ही में कब दिन बीत जाता है, पता ही नहीं चलता। आज भी दोपहर में खाना खाकर सो गया था। ऑफिस जाने के लिए चार बजे जगा तो बाहर झमाझम बरसात हो रही थी। पत्नी ने कहा कि करीब आधे घंटे पहले ही बरसात शुरू हो गई थी। मेरे ऑफिस जाने का जैसे-जैसे समय होता जा रहा था, मेरी चिंता बढ़ती जा रही थी। अखबार की नौकरी भी सीमा पर तैनात जवानों से कम महत्वपूर्ण नहीं होती। यदि ऐसे प्राकृतिक कारणों से दो-चार साथी अनुपस्थित हो जाएं तो काम काफी प्रभावित होता है। सर्दी-जुकाम से ग्रस्त मैं बुखार की आशंका के कारण बारिश में निकलने की हिम्मत भी नहीं कर पा रहा था। खैर, जैसे-तैसे साढ़े पांच बजे जब बादलों का कोष रिक्त हो गया तो मैं हल्की फुहारों के बीच रेनवाटर कोट का कवच धारण कर घर से निकला। घर से ऑफिस की 14-15 किलोमीटर की दूरी में भिगोने के लिए फुहारें भी काफी होती हैं। खैर, आधे रास्ते तक तो सड़कों पर जमा पानी भरपूर बारिश का अहसास करा रही थीं, लेकिन जैसे-जैसे ऑफिस नजदीक आता जा रहा था, अपेक्षाकृत सूखे मौसम में रेनवाटर कोट पहने मैं शायद साथी राहगीरों के लिए अचरज का केंद्र भी बना हुआ था। ऑफिस आने पर दूसरे साथियों को भी बिल्कुल सूखा देखकर अब मुझे आश्चर्य हो रहा था। कुछ साथियों के निवास के करीब तो बिल्कुल ही बरसात नहीं हुई थी और कुछ के यहां बादल दो-चार छींटे देकर गुजर लिए। सबसे आश्चर्य तो तब हुआ जब मौसम की खबर बनाने वाले साथी ने मौसम विभाग के अधिकारियों के हवाले से बताया कि गुलाबी नगर में महज 0.9 मिलीमीटर बरसात हुई है। इसका कारण यह था कि जयपुर में मौसम विभाग का कार्यालय एयरपोर्ट के पास है, जो सांगानेर इलाके में है और उधर आज महज नाममात्र को बरसात हुई थी। ऐसे में जिन इलाकों में बरसात नहीं हुई, उन लोगों के लिए तो मलाल हुआ कि वे सावन की भीगी-भीगी रुत में मौसम या फिर बादलों की मेहरबानी से महरूम रह गए वहीं इसका भी अफसोस हुआ कि मौसम विभाग को बरसात नापने के लिए इतने बड़े शहर के अलग-अलग हिस्सों में व्यवस्था होनी चाहिए ताकि मौसम विभाग का आंकड़ा हास्यास्पद न लगे। मुझमें यक्ष जैसी क्षमता तो नहीं है कि बादल मेरी मनुहार सुन पाएं, लेकिन मौसम विभाग भी यदि मेरी सलाह पर अमल कर ले तो उसकी हेठी नहीं होगी।