मकर संक्रांति पर कर्तव्य निभाने का वादा
आज यानी 14 जनवरी को परंपरागत रूप से देशभर में मकर संक्रांति का त्योहार मनाया गया। वर्षों से यह पर्व नियत तारीख यानी 14 जनवरी को मनाया जाता है। हां, कभी-कभी हिंदी तिथियों में घट-बढ़ या अन्य कारणों से 15 जनवरी को भी लोग मकर संक्रांति का पर्व मनाते हैं।
विशाल भारत देश की विस्तृत भौगोलिक बसावट के साथ ही धार्मिक-सांस्कृतिक मान्यताएं और परंपराएं भी प्रत्येक 200-400 किलोमीटर के बाद बदल जाया करती हैं, सो लोगों ने अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुसार यह पर्व मनाया। पैतृक गांव से दूर रहते हुए आज बरबस ही मकर संक्रांति की बिहार से जुड़ी यादें मानस पटल पर छा गईं।
पूस-माघ की तेज सर्दी के बावजूद सभी भाई-बहनों में सुबह सबसे पहले नहाने की होड़ सी मच जाती थी, जैसे कोई मैडल मिलने वाला हो। इसके बाद दादीजी एक कटोरी में भीगा हुआ चावल-तिल और गुड़ लेकर आतीं और एक-एक कर सबकी हथेली पर देकर पूछतीं-तिलकुट भरबे ? उनके सिखाए अनुसार ही जवाब में हम 'हां' कहते। यह क्रम वे तीन बार दुहरातीं।
जब थोड़ी चेतना जगी तो मां से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि इसका मतलब है कि जब वे बूढ़ी होंगी, बीमार होंगी तो उनकी सेवा और अंतत: उनकी मृत्यु के बाद उनकी मुक्ति के लिए श्राद्ध-तर्पण आदि करने का वादा करना। दादीजी तो नहीं रहीं और पहले अध्ययन और आजीविका के सिलसिले में गांव छूट गया, लेकिन अब मोबाइल फोन ने मां के प्रति अपना वादा निभाने का एक अवसर उपलब्ध कराया है, ताकि उन्हें अपनी ओर से आश्वस्त कर सकूं। पिछले कई वर्षों से यह सिलसिला चल रहा है। मकर संक्रांति के दिन स्नान-पूजा के बाद सबसे पहले घर फोन करता हूं। सबसे पहले वे यही पूछती हैं-तिलकुट भरबे ? और यह सिलसिला पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहेगा और संतानें अपनी जन्मदात्री के प्रति अपना कर्तव्य निर्वहन की सीख लेती रहेंगी। नमन उन महापुरुषों को जिन्होंने इस परंपरा की शुरुआत की।
14 January 2018 Lucknow
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