Saturday, October 26, 2019

बदलाव से ही मिटेगी बदहाली


पिछले साल नवंबर में पहली बार किसी एयरपोर्ट पर जाने का अवसर मिला था। एयरपोर्ट के दीदार से लेकर पहले हवाई सफर तक के अनुभव को मैंने कई किस्तों में फेसबुक मित्रों से साझा किया था। आज जब दुबारा लखनऊ एयरपोर्ट पहुंचा तो ध्यान आया कि यहां पिछली बार मिले युवक से हुई बहुत ही महत्वपूर्ण बातचीत को ही शेयर करना मैं भूल गया था। खैर...नवंबर में आधी रात करीब दो बजे ही एयरपोर्ट पहुंच गया था। अच्छी-खासी सर्दी थी। चहल-पहल भी न के बराबर। करीब साढ़े तीन बजे एक दुबला-पतला दरमियानी कद का युवक भारी-भरकम अटैची के साथ लाउंज में आया और मेरे बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया। थोड़ी देर बात बातचीत शुरू हो गई। राजेश यादव नामक वह युवक देवरिया के किसी ग्रामीण इलाके का रहने वाला था। उसे लखनऊ से दिल्ली जाना था और वहां से जेद्दाह की फ्लाइट पकड़नी थी। वहां से फिर दूसरे विमान से सऊदी अरब के किसी शहर जाना था। मैंने उससे पूछा कि वह वहां कौन-सा काम करता है ? उसने बताया कि वह करीब साढ़े तीन साल से वहां बढ़ई (खाती) का काम कर रहा है। यह सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि देवरिया बिहार का सीमावर्ती जिला है और मैंने बचपन से ही यादवों को आम तौर पर खेती या पशुपालन का काम करते ही देखा है। कुछ लोग व्यापार भी करते हैं, लेकिन उनकी संख्या अंगुली पर गिनने लायक भी नहीं होती। राजेश की पहल ने मुझे बहुत प्रभावित किया। साथ ही आज बढ़ती हुई बेरोजगारी के दौर में काफी उपयोगी भी । बदलते समय के साथ बहुत कुछ बदल रहा है। ऐसे में परंपरागत दायरे से हमें बाहर निकलना ही होगा। नए हुनर सीखने, नए क्षेत्र में हाथ आजमाने से ही रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और फिर वर्षों से समाज में पांव जमाए बदहाली दूर हो सकेगी। सरकार और सरकारी योजनाओं के भरोसे रहने से कुछ नहीं होगा। तभी तो बड़े-बुजुर्ग कह गए हैं-अपना हाथ जगन्नाथ। 05 February 2018 Lucknow

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