Saturday, October 26, 2019

मंझले की मुसीबत


शुक्रवार सुबह डेंटिंग-पेंटिंग के लिए सैलून में गया तो वहां तीन कुर्सियां लगी थीं। पहले जिससे बाल कटवाता था उसने सऊदी अरब, सिंगापुर के साथ ही अपने देश के विभिन्न शहरों में काम करने के बाद आजकल मायानगरी मुंबई में अपना सैलून खोल लिया है। ऐसे में किसी मुफीद नाई की तलाश जारी है। सो पहली बार ही इस सैलून में गया था। सैलून शायद थोड़ी देर पहले ही खुला था, सो तीनों ही कुर्सी खाली थी। मैं बीच वाली कुर्सी पर बैठ गया। इसी बीचएक नौजवान पड़ोस में चाय की थड़ी से हाथ में चाय का कागज का कप लिए भागा-भागा आया और काम शुरू करने को तत्पर सा दिखा। मैंने उससे कहा कि पहले आराम से चाय पी लो, फिर कटिंग करना। बाल कटवाने के दौरान आदतन उससे बातचीत शुरू कर दी। विभिन्न मुद्दों पर बातचीत के बीच पता चला कि वह तीन भाई है और तीनों ही इसी सैलून में काम करते हैं। डेंटिंग के बाद जब पेंटिंग (बालों में मेहंदी लगाने) का काम शुरू हुआ कि उससे कुछ अधिक उम्र का दूसरा युवक आया और वहां रखी बेंच पर चुपचाप बैठ गया। थोड़ी देर बाद एक अन्य ग्राहक आया (जो उसका पूर्व परिचित था), तो उसने अपने औजार संभालने शुरू किए। तकनीक का दखल आजकल हर कहीं हो गया है, सो नाई भी अब हाथ और कैंची के बजाय मशीन से कटिंग करना ज्यादा मुफीद समझते हैं। बाद में आया युवक कटिंग मशीन उठाते ही बोला-कितनी बार कह चुका हूं, काम करने के बाद मशीन को संभालकर रखा करो। इसके पार्ट बाजार में मिलते ही नहीं। हाल ही इसका पार्ट टूट गया था, जिसे जुगाड़ करके जैसे-तैसे सही किया है। दोबारा टूट गया तो बड़ी मुसीबत होगी। मैं समझ गया कि बाद में आया युवक इस नौजवान का बड़ा भाई है। मेरे बाल रंगने में रमे नौजवान ने कहा कि उसने तो सुबह से इस मशीन को काम में ही नहीं लिया। इस पर नसीहत दे रहे युवक ने दुकान से गैरहाजिर सबसे छोटे भाई का हवाला देते हुए कहा कि वह तो लापरवाह है, कहने के बाद भी नहीं समझता, लेकिन तुम तो समझदार हो। यदि मशीन को बेतरतीब तरीके से रखा हुआ देखो तो खुद ही सही से रख दिया करो। उसके बाद वह युवक बड़ा होने के अधिकार का भरपूर इस्तेमाल करते हुए सऊदी अरब में अपने उस्ताद की दी हुई सीखों और उन पर अमल करने की बदौलत खुद के होशियार बनने का हवाला देने लगा। मेरे बालों में मेहंदी लगा रहा नौजवान बिना कोई प्रतिवाद किए चुपचाप अपने बड़े भाई की नसीहतें सुनता रहा। हालांकि उसके मन में उठ रहे भावों के झंझावात उसके चेहरे पर बखूबी आ-जा रहे थे । जहां तक मैंने उन भावों को महसूस किया, उसका लब्बो लुआब यही था कि छोटे की बड़ी गलती को भी बचकानी हरकत समझकर माफ कर दिया जाता है, लेकिन उससे उम्र में महज एक-दो साल बड़े मझले से पिता और बड़े भाई जैसी परिवक्वता की उम्मीद की जाती है, और इस पर खरा न उतरने पर ताने दिए जाते हैं। लेकिन किया भी क्या जाए, यह चलन तो हमेशा से ही चलता आया है। ...अफसोस, बदलते हुए समय के साथ ही छोटे परिवार की बढ़ती अवधारणा के कारण मंझले की यह प्रजाति भी विलुप्त होने के कगार पर है। क्योंकि जब एक या दो ही संतान होगी तो फिर मंझला कहां से आएगा। 11 August 2019

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