कल यानी 15 जनवरी को सेना दिवस था, लेकिन हमें क्यों याद रहता । हम कृतघ्न जो ठहरे। हमें तो सेना के जवानों की याद तभी आती है, जब हम पर कहर टूट पड़ता है कुदरत का या फिर आततायियों का। बाकी समय में तो हम अपनी धुन में मस्त रहते हैं । हां, सेना के जवान यदि कहीं आततायियों पर अधिक कठोर कार्रवाई कर बैठते हैं, तो हमारे पेट में मरोड़ जरूर उठने लगता है ।
...लेकिन जिन्होंने अपने जिगर के टुकड़े, अपनी मांग के सिंदूर को देश की रक्षा के लिए सीमा पर भेज रखा है, वे कैसे भूल सकती हैं सेना दिवस । वे तो अपनी हर आती-जाती सांस के साथ उस जवान की सलामती की दुआ करती रहती हैं। चिट्ठी या फोन के जरिये उनकी हिम्मत बढ़ाती रहती हैं कि तुम तो बस जन्मभूमि की हिफाजत में तन-मन से जुटे रहो, हम अपना खयाल खुद रख लेंगी।
कल ऐसी ही एक पत्नी का अपने सैनिक पति के नाम संदेश देखकर आंखें बरबस ही भर आईं। करीब अठारह महीने के वैवाहिक जीवन में बमुश्किल छत्तीस दिन के लिए भी उसे पति का सान्निध्य मिल पाया होगा, लेकिन उसके मन में इसको लेकर कोई मलाल नहीं है । वह लिखती हैं- तुम मेरे प्यार हो, मेरे रक्षक हो, मेरे नायक हो। दूरी मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती। मैं हमेशा तुम्हारा इंतजार करूंगी। वह यह बताना-जताना भी नहीं भूलती कि हर सैनिक के साथ एक महिला होती है, उससे भी कहीं अधिक मजबूत और बहादुर, जो हर पल पूरी दृढ़ता के साथ उसके साथ खड़ी रहती है पूर्ण समर्पण और भरपूर प्यार की अपार दौलत के साथ।
फेसबुक पर यह संदेश पढ़ने के बाद बरबस ही त्रेता युग का वह दृश्य आंखों के सामने घूमने लगा, जब लक्ष्मण जी भगवान श्रीराम के साथ वनवास के लिए चले जाते हैं और उनकी पत्नी उर्मिला चौदह साल तक बिना किसी शिकायत के उनके लौटने का इंतजार करती हैं । लक्ष्मण जी ही तो प्रभु श्रीराम के सबसे बड़े सेनापति थे, जिनकी शक्ति पर भरोसा करते हुए उन्होंने कहा था -
जग महुं सखा निसाचर जेते।
लछमन हनई निमिस महुं तेते।।
लक्ष्मण जी की वीरता का भान तो भगवान राम के साथ सारे जहान को भी रहा, लेकिन उर्मिला के समर्पण को सबने भुला दिया। भला हो राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त का, जिन्होंने 'साकेत' जैसा अमर महाकाव्य रचकर उर्मिला के त्याग-समर्पण को संसार के सामने रखा। ...और उर्मिला की यह परंपरा को आज भी असंख्य रमणियों ने कायम रखा है, जिनकी सुहाग की बहादुरी की बदौलत धरती और उस पर पल रहा जनजीवन सुरक्षिक-संरक्षित है। इन सबलाओं को सलाम ।
16 January 2018 Lucknow
No comments:
Post a Comment