Tuesday, May 17, 2011

कलम की ताकत से मिटाएं भ्रष्टाचार


राजस्थान उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश और मधुर गीतों-गजलों के रचयिता जस्टिस शिवकुमार शर्मा ने कहा कि पारदर्शिता के अभाव में भ्रष्टाचार पनपता है, जो लोकतंत्र के लिए दीमक की तरह है, इसलिए पत्रकारों को चाहिए कि भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए कलम का इस्तेमाल करें। वे मंगलवार को शहर के गणमान्य पत्रकारों और साहित्यकारों से मुखातिब थे। राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी की ओर से प्रकाशित और वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेश उपाध्याय लिखित पुस्तक 'पत्रकारिता : आधार, प्रकार और व्यवहारÓ के लोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में जनता का स्थान सबसे ऊपर है, लेकिन वर्तमान में जनता ही सबसे उपेक्षित हो गई है। ऐसा लगता है जैसे लोकतंत्र शीर्षासन करने को बाध्य है। ऐसे में पत्रकारों का दायित्व है कि वे लोकतंत्र को इसके मूल स्वरूप में लाएं। उन्होंने अपनी नई गजल के दो शेरों से अपने वक्तव्य का समान यूं किया :
शजर हरे कोहरे के पीछे थे,
दर्द कई चेहरे के पीछे थे।
घुड़सवार दिन था और हम,
अनजाने खतरे के पीछे थे।
इससे पहले डॉ. राजेश कुमार व्यास ने पुस्तक की उपादेयता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस पुस्तक में पत्रकारिता की अकादमिक की बजाय व्यावहारिक शिक्षण की बात बड़े ही सरल और सहज तरीके से बताई गई है। इसमें पत्रकारिता के दौरान कार्य-व्यवहार के दौरान आने वाले द्वंद्व का उल्लेख करते हुए उनसे पार पाने का भी रास्ता सुझाया गया है। भाषा उपदेशात्मक नहीं होने से संप्रेषणीयता बहुत ही अच्छी है।
ेलेखक ज्ञानेश उपाध्याय ने पुस्तक-सृजन और इसके उद्देश्यों में संक्षेप में अपनी बात कही। 'मुझे जो लिखना था, मैंने पुस्तक में लिख दी, अब पाठक और आलोचक इसकी विवेचना करें Ó कहते हुए उन्होंने सधे हुए वक्ता की तरह गेंद सामने वालों के पाले में डाल दी।
वरिष्ठ पत्रकार दिनेश ठाकुर ने कहा कि इस पुस्तक में अच्छे पत्रकार के गुणों का उल्लेख तो है ही, पत्रकार को अपने पेशे के प्रति प्रतिबद्ध होने के लिए आईना भी दिखाया गया है। हालांकि उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि वर्तमान दौर में पत्रकारों में पढऩे की आदत खत्म सी होती जा रही है और इसी का परिणाम है कि आज की पीढ़ी के पत्रकारों में कमलेश्वर, धर्मवीर भारती, राजेंद्र माथुर जैसी प्रतिभाओं के दर्शन नहीं होते।
विशिष्ट अतिथि राजस्थान विश्वविद्यालय में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष डॉ. संजीव भानावत ने कहा कि पुस्तक में पत्रकारिता की अंदरूनी स्थितियों को सामने रखने के साथ ही शब्दों की सत्ता को बचाने की ईमानदार कोशिश की गई है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक से नवागत पत्रकारों को मार्गदर्शन मिल सकेगा। उन्होंने पत्रकारिता की अंदरुनी स्थितियों को सामने रखने के साहस की भी सराहना की। डॉ. भानावत ने कहा कि पुस्तक में पत्रकारिता में स्थापित प्रतिमानों पर नए तरीके से विचार किया गया है तथा सिद्धांत खो चुके प्रतिमानों पर बेबाक टिप्पणी की गई है। इसके माध्यम से शब्द की सत्ता को बचाने की ईमानदार कोशिश की गई है। भाषा-प्रवाह से पुस्तक काफी रोचक बन पड़ी है और पाठक जब एक बार इसे पढऩा शुरू करता है तो पूरा करके ही दम लेता है। (डॉ. भानावत के इस कथन की पुष्टि अन्य वक्ताओं ने भी अपने संबोधन में की।)
अध्यक्षता करते हुए अकादमी निदेशक डॉ. आर. डी. सैनी ने कहा कि हिंदी पत्रकार को अन्वेषी होने के साथ ही तथ्यों पर पैनी दृष्टि रखनी चाहिए। उन्होंने राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी की ओर से पत्रकारिता के लिए प्रकाशित पुस्तकों के बारे में भी काफी कुछ बताया। कार्यक्रम का प्रभावी संचालन मोअज्जम अली ने किया।

Sunday, May 1, 2011

सिर्फ एक प्रतिशत...

राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति की ओर से झालाना स्थित राज्य संदर्भ केंद्र परिसर में पिछले दिनों 'जापान की आपदा : हमारी विपदाÓ विषयक संगोष्ठी आयोजित की गई। जापानी लेखिका तोमोको किकुचि, प्रसिद्ध लेखिका डॉ. राज बुद्धिराजा, डॉ. डी. आर. मेहता आदि ने संबोधित किया। इस अवसर पर प्रौढ़ शिक्षण समिति और प्राकृत भारती की ओर से प्रकाशित पुस्तक 'जापान की आपदा : हमारी विपदाÓ और पोस्टर 'धरती की चिंताÓ का लोकार्पण किया गया। संगोष्ठी के अंत में समिति की सचिव डॉ. अंजू ढढ्ढा मिश्र ने संकल्प पत्र प्रस्तुत किया। प्रस्तुत है संकल्प पत्र :

जापान के निवासियों पर गुजरी हृदय विदारक विभीषिका में हम सबकी संवेदना वहां के निवासियों के साथ है। इस भयंकर दुर्घटना से जूझने में जापान के निवासियों ने जिस सामथ्र्य, साहस और संयम का परिचय दिया है, वह दुनिया में एक सराहनीय मिसाल बन गया है। आइए, इसी आत्मबल का प्रयोग हम ऐसी विभीषिकाओं की संभावनाओं से लडऩे में करें, जिससे ऐसी स्थिति दुनिया को दोबारा न झेलनी पड़े।
दुनिया के ऊर्जा उत्पाद का जितना भाग आणविक ऊर्जा से प्राप्त होता है, उतना हम अपने आत्मबल से सहज ही बता सकते हैं। आइए, प्रतिज्ञा करें कि हम अपने जीवन, घर, संस्थान जहां भी हैं, वहां संसाधनों का दोहन सिर्फ एक प्रतिशत कम कर लें। हमारी यह छोटी सी चेष्टा दुनिया के वंचितों को उनके जीवन यापन के साधन मुहैया कराने के साथ ही हमें पर्यावरण संबंधी खतरों से मुक्त करा सकती है।