Saturday, October 26, 2019

जुग जुग जीओ


जुग जुग जीओ हमारे बचपन के दिनों में प्रणाम करने का मतलब हाथ जोड़ना नहीं, बल्कि पैर छूना ही हुआ करता था और बदले में आशीर्वाद देने में कोई कंजूसी नहीं होती थी। पड़ोस की एक दादीजी अक्सर मेरी दादीजी से मिलने आया करती थीं। हम बच्चे जब उनके पैर छूते तो वे अपने बालों पर हाथ फिरातीं और जो दो-चार बाल उनके हाथ में आते, उन्हें हमारे सिर पर रखते हुए ‘लखिया हो’ कहकर हमें असीसतीं। इस आशीर्वाद से उनका मतलब होता ‘लाख वर्ष जीओ’। ऐसे ही एक चाचाजी पैर छूने पर कहते-‘खुश रहो, आबाद रहो, यहां रहो चाहे इलाहाबाद रहो’। एक अन्य चाचाजी आशीर्वाद देते-मस्त रहो, माखन मिश्री खाओ। बीतते हुए समय के साथ एक-एक कर वे सभी संसार सागर से मुक्ति पाकर परमपिता परमेश्वर के धाम में पहुंच गए, लेकिन उनकी स्मृति के मधुर संगीत की घंटी आज भी दिल में जब-तब बज उठती है। बदलते हुए समय के साथ बहुत कुछ बदल गया। अब न तो किसी के अभिवादन में उस तरह की विनम्रता दिखती है और न ही आशीर्वाद देने वालों में वैसी उदारता। दोनों ही महज औपचारिकता निभाते से दिखते हैं। अभी 31 दिसंबर की अर्द्धरात्रि को अपने बड़े भाई, अभिभावक और संरक्षक को भेजे वॉट्सएप संदेश के बदले ‘जुग जुग जीओ’ का आशीर्वाद मिला तो बरबस ही ये पुरानी यादें ताजा हो आईं। 02 January 2019

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