पिता
पिता कब सो पाते हैं चैन की नींद
बुनते रहते हैं संतान के लिए सपने
और उन सपनों को सच करने के लिए
खुद को तपाते-खपाते रहते हैं रात-दिन
इस बीच कब खो जाता है
खुद का अस्तित्व
अहसास ही कहां हो पाता है
आखिर बीज अपना अस्तित्व
मिटाकर ही तो
वृक्ष बन पाता है ।
05 June 2018 Lucknow
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