Saturday, October 26, 2019

वैशाली से वैशाली की यात्रा


ट्रेन जहां हमें एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाती है, वहीं इनका खुद का सफर भी चुपचाप चलता रहता है। हर ट्रेन का अपना इतिहास भी होता है, लेकिन कुछ घंटों के लिए इसे अपना हमराही बनाने वाले मुसाफिरों को कहां फुरसत होती है इसे खंगालने की। ट्रेन के सफर में होने वाली दुश्वारियां उसे इस कदर पसंद कर देती हैं कि हर यात्री चाहता है कि कब उसकी मंजिल आए और इससे निजात मिले। इसके लिए हमारी सरकार और रेलवे के अधिकारी- कर्मचारी जिम्मेदार हैं, वहीं यात्रियों में सिविक सेंस की कमी भी खुद अपने ही लिए परेशानियों का सबब बन जाती है खैर, छोड़िए इन बातों को। आज तो हम वैशाली एक्सप्रेस के बारे में बात करते हैं। पहले रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र ने बड़े अरमानों से वर्ष 1969 में अपने सपनों की रानी इस ट्रेन की शुरुआत की थी, ताकि बिहार के लोगों का दिल्ली तक का सफर खुशगवार हो सके। बिहार ही नहीं, पूरे देश में काफी लोकप्रिय रहे ललित बाबू ने इसका नाम भी बड़ा कमाल का रखा था- जयन्ती जनता एक्सप्रेस। जयन्ती उनकी अर्धांगिनी का नाम था और जनता जिसके लिए ट्रेन चलाई गई। किसी जमाने में इस ट्रेन में सफर करना स्टेटस सिंबल हुआ करता था। बदलते हुए समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है। नया जमाना इस बात को कैसे बर्दाश्त कर पाता कि किसी ट्रेन का नाम किसी राजनेता की पत्नी के नाम पर हो। लोकतंत्र के पहरुओं को ट्रेन के नाम में जनता से पहले जयन्ती का होना राजशाही के डंक सरीखा लगता था। सो इस ट्रेन का नाम बदल कर लोकतंत्र की जन्मभूमि वैशाली के नाम पर रख दिया गया। तब से यह वैशाली एक्सप्रेस के नाम से ही जानी जाती है। पचास साल के अपने सफ़र में भोपाल एक्सप्रेस के बाद यह दूसरी ट्रेन है, जिसे इसकी खूबियों, सुविधाओं और पंक्चुअलिटी के लिए वर्ष 2012 में ISO 9000 सर्टिफिकेट मिला था। मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि लोकतंत्र की जननी वैशाली जिले में मेरी भी जन्मभूमि है। और यह भी सुखद संयोग है कि पहले रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र का ननिहाल इसी गांव में है। अपने नवासे के रेल मंत्री होने पर हमारे गांव के लोगों ने सपना संजोया था कि रेलवे के नक्शे पर हमारे गांव का भी नाम होगा, लेकिन ललित बाबू के असामयिक अवसान ने इस सपने पर हमेशा हमेशा के लिए ग्रहण लगा दिया। बहुत बाद में जब राम विलास पासवान हाजीपुर संसदीय क्षेत्र से सांसद चुने जाने के बाद रेल मंत्री बने तो रेल बजट में उन्होंने हमारे इलाके में नई रेल लाइन की घोषणा की थी, लेकिन वह कागजों से बाहर नहीं आ पाई। देखना है, सियासत के दांव-पेंच के भंवर से कब यह फाइल निकले और हमारा गांव भी रेलवे के मानचित्र पर नजर आए। 19 February 2019

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