मानव जीवन में जो कुछ भी है, उसका प्रतिबिंब रेल यात्रा में बरबस ही नजर आ जाता है। हर बार एक नई यात्रा, एक नया अनुभव।
...इस बार पिछले रविवार को बरौनी-ग्वालियर मेल में मुजफ्फरपुर से रिजर्वेशन था। रेलवे की मेहरबानी कि ट्रेन निर्धारित समय से करीब बीस मिनट पहले ही पहुंच गई। थोड़ी ही देर में एक दंपती तीन-चार महीने के बच्चे के साथ आए। अबकी बिहार में भी भीषण गर्मी लोगों को बेदर्दी से झुलसा रही है। ऐसे में बच्चा गर्मी के कपड़ों में ही था।
आम तौर पर भारतीय पति, खासकर बिहार के, घर के काम में रुचि नहीं लेते। सारा जिम्मा पत्नियां ही उठाती हैं, लेकिन ट्रेन के सफर में यह सिलसिला बदल जाता है। सफर के दौरान पति खुद ही अधिकाधिक दायित्वों का सहर्ष वहन करता है। वजह चाहे पत्नी को कमतर समझना हो या फिर दैनंदिन जीवन में पत्नी की कर्तव्य परायणता की क्षतिपूर्ति,पति खुद आगे बढ़कर सारे काम करता हुआ नजर आता है।
हां, तो एसी थ्री में तापमान कुछ ज्यादा ही कम था। लेकिन इस सबसे बेखबर बच्चा अपनी मां की गोद में निश्चिंत था और पति महाशय तीन-चार बैग में से एक-एक कर ट्राई करने के बाद फुल बाजू की शर्ट, मोजे, टोपी आदि निकाल कर उसे पहना रहे थे। साथ ही पत्नी को सुनाते जा रहे थे कि हमारे परिवार वालों ने बच्चे का कितना ख्याल रखा है, इतनी सारी चीजें रख दी हैं। पत्नी का मायका पक्ष अपेक्षाकृत कमजोर था या कि उसकी मानसिक स्थिति अत्यधिक मजबूत थी, कि वह निर्विवाद पति का प्रलाप सुन रही थी। या फिर यह भी हो सकता है कि उसका इरादा गंतव्य पर पहुंचने के बाद पति को सूद सहित सुनाने का रहा हो।
खैर, इसके बाद पति ने ही बैग से खाना निकाला और दोनों ने भोजन करना शुरू कर दिया। बच्चे को बर्थ पर लिटा दिया गया और पति स्मार्टफोन से वीडियो कॉलिंग करते हुए बच्चे की पल-पल बदलती मुखाकृति और मुस्कान को अपने परिवार वालों से शेयर करने में जुटा था। दिन भर की व्यस्तता के कारण हुई थकान की वजह से कब मुझे नींद आ गई, पता ही नहीं चला। सुबह जब नींद खुली तो सहयात्री बदल चुके थे।
14 June 2019
No comments:
Post a Comment