Saturday, October 26, 2019

नीलकंठ देखें, नीलकंठ बनें


बचपन के दिनों में शारदीय ‘नवरात्र’ घर के बड़े-बुजुर्गों के लिए नौ दिनों तक चलने वाला आध्यात्मिक अनुष्ठान होता था, लेकिन हम बच्चों के लिए तो यह उत्सव प्रतिमाओं के निर्माण के साथ ही शुरू हो जाता। प्रतिमा के आकार लेने की इस कला के हरेक पहलू को बारीकी से देखने की ललक बरबस ही हमें वहां खींच ले जाती थी। नवरात्र के दौरान रोज सुबह दुर्गा सप्तशती के पाठ के बाद प्रसाद में मिलने वाले खीरा का स्वाद आज तक नहीं भूला। दुर्गा पूजा का मेला सप्तमी से परवान चढ़ता। इस दौरान किसी साल नाटक, किसी साल नौटंकी तो किसी साल अन्य आयोजन होते। ... और फिर पूजा की पूर्णाहुति के साथ आती विजयदशमी। ऐसा माना जाता है कि विजयदशमी की सुबह नीलकंठ पक्षी के दर्शन करने से पूरे साल सभी कार्य सफलतापूर्वक संपन्न होते हैं। इसलिए हम सभी भाई-बहन तड़के ही स्नान कर आस-पड़ोस के पेड़ों पर निगाहें टिका देते थे। नीलकंठ-दर्शन के लिए हमारी व्यग्रता चरम पर होती थी। ... और शायद नीलकंठ पक्षी को भी हमारी व्यग्रता का अहसास हो जाता था। तभी तो देखते ही देखते हममें से किसी न किसी की नजर नीलकंठ पर पड़ जाती और वह दूसरों को भी यह दर्शन-लाभ देकर खुद को श्रेष्ठतर समझता। नीलकंठ पक्षी की किस विशेषता के कारण उसका दर्शन शुभ फलदायक माना जाता है, आज तक नहीं समझ पाया। हां, ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद निकले हलाहल (जहर) के दुष्प्रभाव से संसार को बचाने के लिए भगवान शिव ने इसे अपने कंठ में धारण कर लिया था। इससे उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाने लगे। और उनका नाम मिल जाने मात्र से नीलकंठ पक्षी की महत्ता इतनी बढ़ गई। ...तो हम भी भगवान शिव का अनुसरण करते हुए अपने जीवन को अर्थपूर्ण बना सकते हैं। इसके लिए किसी और के हिस्से का जहर पीने की जरूरत नहीं है। विजयदशमी पर अपनी सामर्थ्य के अनुसार किसी की परेशानी कम करने में सहायक बनकर हम नीलकंठ की भूमिका निभाकर अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। जरूरी नहीं कि यह कार्य किसी को आर्थिक सहायता देकर ही किया जाए। किसी के मुश्किलों से घिरे होने पर उससे सांत्वना और दिलासा के दो शब्द बोलकर भी हम उसकी पीड़ा कम कर सकते हैं। किसी मेधावी बच्चे को सफलता के लिए प्रोत्साहित करने का काम भी कम महत्वपूर्ण नहीं होता। कई सारे लोग थोड़ी-थोड़ी मदद करके बहुत बड़ी मुसीबत में फंसे व्यक्ति को इस कठिन हालात से उबार सकते हैं। देश-काल-परिस्थिति के हिसाब से सहयोग के नए आयाम खोजे जा सकते हैं। ... तो आइए...इस विजयदशमी पर हम नीलकंठ के दर्शन के साथ खुद भी नीलकंठ बनें। 08 October 2019 Vijayadashmi

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