ज्योति से ज्योति जलाते चलो
मन जब हर तरफ से परेशान हो जाता है तो संगीत के सात सुर उसे सुकून का अहसास कराते हैं। यही संगीत जब किसी जरूरतमंद और उसके परिवार के भरण-पोषण का जरिया बनता है तो आठवां सुर बनकर उसके जीवन में नया रस घोल सकता है।
जुलाई के अंत में लखनऊ से जयपुर जाने के दौरान मरुधर के अंतहीन इंतजार के दौरान देर रात करीब दो बजे मैंने चारबाग स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर हरदोई के भेलावां निवासी दृष्टिहीन बिजनेस कुमार को मासूम बिटिया के साथ देखा था। पिता-पुत्री के बीच क्षणिक मर्मस्पर्शी संवाद को मैंने अपनी फेसबुक वॉल पर पोस्ट भी किया था। सहज ही मेरे मन में उनके लिए कुछ करने के भाव उत्पन्न हुए। चर्चा के दौरान पता चला कि संगीत में उनकी रुचि है। महत्वाकांक्षा और खुद्दारी के धनी इस शख्स से मैंने उनका मोबाइल नंबर ले लिया।
हालांकि व्यक्तिगत व्यस्तताओं में कुछ इस कदर उलझ गया कि...। हाल ही जब मैंने हरदोई जिले के ही रहने वाले समाजसेवा में अग्रणी और दफ्तर में मेरे सहयोगी Vaibhav Shanker वैभव अवस्थी जी से इस बारे में बात की तो बिजनेस कुमार के जीवन में छाए अंधियारे को दीपावली पर स्वरोजगार के दीपक से रोशन करने की योजना बनी। एक से बढ़कर एक मददगार आगे आने लगे। लखनऊ में मेरे मकान मालिक श्री कृष्ण स्वरूप माथुर, मेरे लंगोटिया यार Amrendra Mishra अमरेंद्र कुमार मिश्र के साथ ही दफ्तर के सहयोगी सर्वश्री सुधीर कुमार Sudhir Kumar, वैभव शंकर अवस्थी, सुबीर कुमार शर्मा Subeer Sharma, पुनीत गुप्ता Puneet Gupta, दीपा जी, सौरभ दीक्षित Saurabh Dixit, अतुल मोहन सिंह , महावीर पाराशर Mahaveer Parashar , आदर्श प्रकाश सिंह Adarsh Prakash Singh, विवेक गुप्ता Vivek Gupta और मनोज श्रीवास्तव Manoj Srivastava ने जनकल्याण के इस यज्ञ में आर्थिक सहायता की आहुति दी।
...और इसका सुपरिणाम यह हुआ कि शनिवार को बिजनेस कुमार को लखनऊ बुलाकर उन्हें उनकी पसंद का वाद्य यंत्र सौंप दिया गया। बिजनेस कुमार की अर्द्धांगिनी भी दृष्टिहीन हैं, लेकिन ईश्वर की कृपा से उनकी दोनों बच्चियां और सबसे छोटा बेटा पूरी तरह से स्वस्थ हैं। ऐसे में उनकी जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए मदद की यह मुहिम जारी रहेगी।
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