Saturday, October 26, 2019

सितारों के आगे जहां और भी है...


मां के गर्भ में भ्रूण के आकार लेने के साथ ही गणित का दखल शुरू हो जाता है। माता-पिता से लेकर घर-परिवार के लोग नई किलकारी गूंजने का दिन गिनने लगते हैं। फिर जन्म के बाद-बच्चा कितनी बार रोया, कितनी बार दूध पीया, कितनी बार सोया...और गिनती का यह सिलसिला अनवरत चलता रहता है जीवन भर। हर कदम पर गणित से चाहे-अनचाहे वास्ता पड़ता ही रहता है। शायद इसीलिए मानव जीवन में गणित को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। हर मां-बाप की तमन्ना होती है कि उसकी संतान गणित में मास्टरी हासिल करे। उनकी भी यही तमन्ना थी, लेकिन नौवीं के फाइनल एग्जाम के रिपोर्ट कार्ड में बेटे को गणित में ही सबसे कम अंक थे। माता-पिता के चेहरे मुरझा गए। क्या करेगा बेटा? कैसा होगा उसका भविष्य? चिंतातुर पिता ने बड़े भाई से परेशानी शेयर की। बड़े भाई ने ज्यादा दुनिया देखी थी, सो अनुभव का हवाला दिया...सितारों के आगे जहां और भी है। ...लेकिन खुद उनका ही मन कहां मान रहा था। दो-चार दिन इसी उधेड़बुन में बीते। फिर एक परिचित ज्योतिषी मित्र के पास पहुंचे। ज्योतिषी महोदय ने बड़े ही बेतकल्लुफी के अंदाज में कहा-बच्चा गणित में कमजोर है तो क्या हुआ? उसे डॉक्टर बनाइए। बच्चे को साइंस में हर बार की तरह इस बार भी काफी अच्छे अंक आए थे। पूछा-बायोलॉजी पसंद है। उसके हामी भरने पर सलाह दी-छोड़ो गणित का चक्कर, बायोलॉजी में मन लगाओ। ...और इस तरह नींव पड़ गई उसके डॉक्टर बनने की। बच्चे ने दसवीं के बोर्ड एग्जाम में कमाल का जौहर दिखाया। इससे उत्साहित परिवार वालों ने मेडिकल की कोचिंग में दाखिला दिला दिया। स्कूल के साथ कोचिंग भी चलती रही। बारहवीं की बोर्ड परीक्षा में इतने अच्छे अंक आए कि बच्चा ही नहीं, घर वालों का सिर भी गर्व से ऊंचा हो गया। इसके साथ ही पहले ही प्रयास में मेडिकल की प्रवेश परीक्षा में भी प्रदर्शन अच्छा रहा। बीडीएस में तो आसानी से एडमिशन हो सकता था, लेकिन एमबीबीएस का लक्ष्य भेदना बाकी था। सामान्य श्रेणी के बच्चों को जो दुश्वारियां झेलनी पड़ती हैं, उसे देखते हुए घर वालों ने बीडीएस में नाम लिखवा लेने की सलाह दी कि कहीं अगली बार यह मौका भी न चूक जाए, लेकिन बच्चे को अपनी मेधा पर भरोसा था। कहा-एक चांस लेने दीजिए। परिवार वालों का साथ मिला तो खुद भी जान लगा दी। अब तो स्कूल जाने का भी लफड़ा नहीं था। बस घर से कोचिंग और कोचिंग से घर। इसके बाद बचे समय में केवल पढ़ाई। न स्मार्टफोन से नाता न व्हाट्सएप और फेसबुक का शौक। मेहनत रंग लाई और इस बार जब नीट का रिजल्ट आया तो 99.1 परसेंट अंक के साथ ऑल इंडिया 1082 रैंक आने से बच्चे के सुनहरे भविष्य की राह खुल गई। परिवार वालों की कौन कहे, अड़ोसी-पड़ोसी और नाते-रिश्तेदार भी एक-दूसरे को बधाइयां दे रहे हैं, खुशियां मना रहे हैं। शायद इसीलिए कहा गया है, प्रगति के रास्ते कभी बंद नहीं होते। हम ही अपनी आंखें बंद कर लेते हैं। संभावनाओं को टटोल नहीं पाते। जो संभावनाएं देखकर विकल्प तय कर लेते हैं और दृढ़ संकल्प के साथ उसे पाने के लिए खुद को समर्पित कर देते हैं, उन्हें मंजिल जरूर मिलती है। 07 June 2018

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