Thursday, November 19, 2020
... वो तो मैंने झूठ बोला था
Monday, August 24, 2020
कंडक्टर की कमाई
Saturday, August 22, 2020
आजु मंगल के दिनमा शुभे हो शुभे...
Friday, August 14, 2020
दोस्ती का क्यूआर कोड
Tuesday, August 11, 2020
झूला लगे आम की डाली
Sunday, August 2, 2020
राखी का त्योहार : भावनाओं को भुनाता बाजार
Thursday, July 30, 2020
बाबू आउटडेटेड हुए, ईया हुईं इतिहास
Thursday, July 23, 2020
आम की गुठली से निकलती मीठी तान
Tuesday, July 14, 2020
गोरलगाई, मुंहदिखाई
Sunday, July 12, 2020
ठेले पर मलिहाबाद
Saturday, July 11, 2020
रॉन्ग नंबर
Thursday, July 9, 2020
...कुशल चाहता हूं
Sunday, July 5, 2020
उत्सव के बहाने, बहाने से उत्सव
Thursday, July 2, 2020
खेतों में रोपते खुशियां, घरों में मनता घड़ी पर्व
Sunday, June 28, 2020
दू गो जामुन गिरा दे...
Thursday, June 25, 2020
गंगा तेरा पानी अमृत...
गंगा तेरा पानी अमृत...
किसी भी संकट की वजह से परेशान होना स्वाभाविक है, मगर इसकी सबसे बड़ी खूबी है कि संकट के क्षणों में हम एक-दूसरे के नजदीक आ जाते हैं। सुख तो अनचाहे ही एक अदृश्य दीवार सी खड़ी कर देता है। सो, कोरोना वायरस की महामारी के इस वैश्विक संकट की घड़ी में लोग खुद के साथ ही अपनों के लिए भी फिक्रमंद रहने लगे हैं। एक-दूसरे को फोन करके, व्हाट्सएप के माध्यम से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर बनाए रखने के लिए अपने-अपने हिसाब से सलाह देते रहते हैं।
मैं भी इन दिनों अपनों की इन्हीं स्नेह भावनाओं से आप्लावित होता रहता हूं। कोई नियमित रूप से योगाभ्यास करने की सलाह देता है तो कोई आर्ट ऑफ लिविंग की सुदर्शन क्रिया करने के लिए प्रोत्साहित करता है। कोई सद्गुरु जग्गी वासुदेव के बताए अभ्यास को दुहराने के लिए कहता है। अन्य वीडियो संदेश में भी अलग-अलग तरीके से कुछ ऐसे ही भाव सन्निहित रहते हैं। इन संदेशों का अनुशीलन करने के बाद जहां तक मैं समझ पाया हूं, सबका लक्ष्य एक ही है, हां, उस तक पहुंचने के लिए अलग-अलग रास्ते बना लिए गए हैं।
बचपन से हम गंगाजल की पवित्रता के बारे में सुनते रहे हैं। अपनी-अपनी भौगोलिक स्थिति के अनुसार हर जगह के गंगाजल को समान रूप से वंदनीय और सर्वोच्च महत्व देते हुए अनिवार्य रूप से पूजाघर में रखा जाता रहा है। हां, बढती उम्र, शिक्षा और संपन्नता तथा सामर्थ्य के कारण जब किसी को हरिद्वार जाने का अवसर मिला तो गंगा की धारा का सौंदर्य देखा तो स्वाभाविक रूप से ही मोहित हो गया। स्मृति स्वरूप अपने साथ गंगाजल लाना नहीं भूला। वहां उसे किसी ने ऋषिकेश के बारे में बताया तो तत्काल ही चल पड़ा। वहां गंगा का अविरल निर्मल प्रवाह देखकर वह आध्यात्मिक आनंदातिरेक से भर उठा। मां गंगा के चरणों में प्रणाम निवेदित करते हुए एक अन्य बर्तन में पवित्र गंगाजल सहेजना नहीं भूला। इस तरह गंगा तो एक ही रही, लेकिन गंगाजल की अलग-अलग श्रेणियां निर्धारित कर दी गईं। पटना का गंगाजल, वाराणसी का गंगाजल, हरिद्वार का गंगाजल, ऋषिकेश का गंगाजल, गंगोत्री का गंगाजल आदि-इत्यादि।
इसी तरह सनातन परंपरा में सदियों पहले से हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने मानव मात्र के शारीरिक-मानसिक विकास, उत्थान व कल्याण के लिए योग और अन्य विधाओं का विपुल भंडार संजो रखा है। विभिन्न मार्गों के प्रतिपादक आज इसी विपुल भंडार में से सामग्री लेकर उसे अपने हिसाब से अलग-अलग तरीके से पैकिंग करके हमारे सामने उपस्थित हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो अमूमन दूध और चीनी के सम्मिश्रण से ही मिठाइयां बनाई जाती हैं। हां, इसे बनाने की प्रक्रिया अलग-अलग हो सकती है। कोई दूध को खौला-खौलाकर उसे खोया में परिणत कर उससे मिठाई बनाता है तो कोई दूध को फाड़कर छेना बनाकर उससे मिठाई बनाता है। कई बार अन्न और फल-सब्जी से भी मिठाई बनाई जाती है। मसलन बेसन के लड्डू, पेठे का मुरब्बा, आंवला का मुरब्बा, परवल की मिठाई आदि-इत्यादि।
कुल मिलाकर गंगाजल के माध्यम से हमारा उद्देश्य जहां जीवन में आध्यात्मिक पवित्रता लाना है, वहीं मिठाई के जरिए जुबान को तीखे, नमकीन, कड़वे स्वाद से मुक्ति दिलाकर मिठास का अहसास कराना है। इसी तरह हम किसी भी पंथ प्रतिपादक के सिद्धांतों से सहमत हों या न हों, मगर अपने शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य के लिए हमें योग-साधना को अवश्य ही अपने दैनंदिन जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए। अफसोस, मैं खुद ही अभी पर उपदेश कुशल बहुतेरे का ही पथिक हूं, मगर आशा करता हूं कि आप मित्रों की प्रेरणा से इस पर अमल करने की कोशिश अवश्य कर पाऊंगा।