नदी की धारा को रोक पाना आसान होता है। देश-विदेश में विशालकाय बांध बनाकर बड़ी-बड़ी नदियों की धाराएं रोकी गई हैं, लेकिन समंदर को...उसका विस्तार इतना अधिक होता है कि उसे बांध पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन होता है। वहीं, नदियां अपने आंचल में मीठे जल का भंडार समाये होती हैं और मिठास को सीमा में बांधना कहीं आसान होता है। वहीं, नदियों का मीठा जल भी समुद्र में मिलने के बाद अपनी तासीर खो देता है। ...और फिर उस खारेपन के पारावार को किसी सीमा में बांध पाना दुश्वार हो जाता है।
समंदर का यह खारापन हमारी आंखों की गहराइयों में भी समाया होता है, जिससे इसका स्वाद भी नमकीन हो जाता है। गमों की मार जब पड़ती है तो आंखों से यह नमक आंसुओं में घुलकर गालों से होता हुआ होठों तक का सफर करता हुआ बरबस ही अपने स्वाद का अहसास कराने लगता है। ऐसे क्षणों में आंसुओं की लड़ी थमने का नाम ही नहीं लेती।
जीवन में कुछ क्षण ऐसे भी आते हैं, जब न चाहते हुए भी हम दुख के समंदर में उठ रही लहरों में डूबने-उतराने को विवश हो जाते हैं। पिछले कुछ दिनों से ऐसे ही दौर से गुजर रहा हूं मैं। इसी का नतीजा है कि न चाहते हुए भी जीवन में एक मौन सा पसर गया है।
...और वे अंतिम सफर पर चले गए
23 मार्च को लखनऊ से जयपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन लेट होने से मूड उखड़ा हुआ था। सो बैटरी खत्म होने के डर से मैंने फोन को स्विच ऑफ कर दिया था। दोपहर करीब 12 बजे आगरा पहुंचने के बाद फोन को ऑन किया तो वॉट्सएप पर मैसेज दिखा-मंझली मामी नहीं रहीं। मन खिन्न हो गया। अभी छह-सात दिन पहले ही तो उनसे बात की थी। सब कुछ ठीक था, फिर अचानक ऐसा कैसे हो गया...? उनकी ममता को याद कर बरबस ही दिल रो उठा। इसके तीसरे ही दिन एक और दुखद संदेश मिला कि बड़े मामा नहीं रहे। ऐसे में दुख दोहरा हो गया, लेकिन नियति के आगे किसकी चली है। परिस्थितियों ने पांवों में इस कदर बेड़ियां पहना दीं कि इन महान विभूतियों के अंतिम दर्शन की कौन कहे, इनके श्राद्धकर्म में भी शामिल नहीं हो सका। परमपिता परमेश्वर इन्हें अपने चरणों में स्थान प्रदान करें ।
05 April 2018
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