Saturday, March 29, 2008

शॉर्ट फिल्में देखने के लिए हुए लंबलेट

इन दिनों राजस्थान सरकार विभिन्न संगठनों के सहयोग से राजस्थान दिवस समारोह का आयोजन कर रही है। इसके तहत पिछले 24 मार्च से सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। चूंकि जयपुर ही नहीं, राजस्थान के दूसरे शहर भी अपने धरोहरों की थाती के कारण देशी-विदेशी सैलानियों के आकर्षण के केंद्र रहे हैं, इसे देखते हुए राजस्थानी लोकसंस्कृति और परंपराओं की सीमारेखा नहीं खींचते हुए बॉलीवुड तक से सितारे बुलाए गए। इसी क्रम में 27 मार्च को जवाहर कला केंद्र में शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल शुरू हुआ। आज यानी शनिवार को एक मित्र ने वहीं से फोन किया कि आओ, लघु फिल्में देखते हैं। कई बार ऐसा होता है कि दोस्तों का मन रखने और खुद के बारे में उनका भ्रम कायम रखने के लिए मैं ऐसे कार्यक्रमों में जाने से मना नहीं कर पाता, जिसके विषय में मैं बिल्कुल ही कुछ नहीं जानता हूं। तो साहब, आज भी मैं उनका मन रखने के लिए चला गया। जवाहर कला केंद्र के दो ऑडिटोरियम में यह शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल चल रहा था। एक ऑडिटोरियम में खाली कुरसियां पंद्रह-बीस दर्शकों के साथ फिल्मों का आनंद ले रही थीं, सो हमने दूसरे ऑडिटोरियम का रुख करना ही मुनासिब समझा। वहां कुरसियां नहीं हैं, फर्श पर ही कालीन बिछी है, और उसी पर बैठकर कलाप्रेमी यहां होने वाली विचार गोष्ठियों, संगीत सभाओं और अन्य कार्यक्रमों का आनंद लेते हैं। आज इस तथाकथित शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में जो नजारा दिखा, हमें हतप्रभ करने के लिए काफी था। युवक ही नहीं, उनके साथ आई युवतियां भी (जो संभवतया कॉलेज गलॅ थीं), बाजाप्ता लेटकर फिल्म का लुत्फ उठा रहे थे। अब उनकी निगाहें स्क्रीन पर थीं या बगलगीर पर, यह तय करना मुश्किल हो रहा था। इनमें शॉर्ट फिल्मों की समझ रखने वाले कितने थे और बाहर की तपिश से बचने के लिए एसी की ठंडी हवा का लुत्फ उठाने वाले कितने, इसका निर्णय कर पाना हमारे लिए संभव नहीं था।
वह तो गनीमत थी कि दिहाड़ी मजदूर टाइप के तीन-चार ऑपरेटर ही प्रोजेक्टर के सहारे फिल्म दिखा रहे थे और इन फिल्मों के प्रबुद्ध देशी-विदेशी निर्माता-निदेशक नदारद थे, अन्यथा वे हमारी इस अपसंस्कृति पर एक और शॉर्ट फिल्म शूट करने से बाज नहीं आते। हम तो चूंकि काफी देर से गए थे, सो तीर्थराज पुष्कर पर फिल्माई गई एक फिल्म देखी, चूंकि पुष्कर-दशॅन हम दोनों पहले ही साक्षात देख चुके थे, सो ज्यादा इंटरेस्टिंग नहीं रहा।
इन çदनों राजस्थान सरकार विभिन्न संगठनों के सहयोग से राजस्थान çदवस समारोह का आयोजन कर रही है। इसके तहत पिछले 24 मार्च से सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। चूंकि जयपुर ही नहीं, राजस्थान के दूसरे शहर भी अपने धरोहरों की थाती के कारण देशी-विदेशी सैलानियों के आकर्षण के केंद्र रहे हैं, इसे देखते हुए राजस्थानी लोकसंस्कृति और परंपराओं की सीमारेखा नहीं खींचते हुए बॉलीवुड तक से सितारे बुलाए गए। इसी क्रम में 27 मार्च को जवाहर कला केंद्र में शॉर्ट फिल्म फेçस्टवल शुरू हुआ। आज यानी शनिवार को एक मित्र ने वहीं से फोन किया कि आओ, लघु फिल्में देखते हैं। कई बार ऐसा होता है कि दोस्तों का मन रखने और खुद के बारे में उनका भ्रम कायम रखने के लिए मैं ऐसे कार्यक्रमों में जाने से मना नहीं कर पाता, जिसके विषय में मैं बिल्कुल ही कुछ नहीं जानता हूं। तो साहब, आज भी मैं चला गया। जवाहर कला केंद्र के दो ऑडिटोरियम में यह शॉर्ट फिल्म फेçस्टवल चल रहा था। एक ऑडिटोरियम में खाली कुçर्सयां पंद्रह-बीस दर्शकों के साथ फिल्मों का आनंद ले रही थीं, सो हम दूसरे ऑडिटोरियम में चले गए। यहां कुçर्सयां नहीं हैं, फर्श पर ही कालीन बिछी है, और उसी पर बैठकर कलाप्रेमी यहां होने वाली विचार गोçष्ठयों, संगीत सभाओं और अन्य कार्यक्रमों का आनंद लेते हैं। आज इस तथाकथित शॉर्ट फिल्म फेçस्टवल में जो नजारा çदखा, हमें हतप्रभ करने के लिए काफी था। युवक ही नहीं, उनके साथ युवतियां भी, बाजाप्ता लेटकर फिल्म देख रहे थे। अब उनकी निगाहें स्क्रीन पर थी, या बगलगीर पर, यह तय करना मुश्किल हो रहा था। इनमें शॉर्ट फिल्मों की समझ रखने वाले कितने थे और बाहर की तपिश से बचने के लिए एसी की ठंडी हवा का लुत्फ उठाने वाले कितने थे, इसका निर्णय कर पाना हमारे लिए संभव नहीं था।
वह तो गनीमत थी कि तीन-चार ऑपरेटर ही प्रोजेक्टर के सहारे फिल्म çदखा रहे थे और इन फिल्मों के प्रबुद्ध देशी-विदेशी निर्माता-निदेüशक नदारद थे, अन्यथा वे हमारी इस अपसंस्कृति पर एक और शॉर्ट फिल्म शूट करने से बाज नहीं आते। हम तो चूंकि काफी देर से गए थे, तीर्थराज पुष्कर पर फिल्माई गई एक फिल्म देखी, लेकिन चूंकि यह नजारा हम दोनों पहले ही साक्षात देख चुके थे, सो ज्यादा इंटरेस्टिंग नहीं रहा। हां, एक फिल्म जरूर अच्छी थी, जिसमें इस तथ्य को बताने का साथॅक प्रयास किया गया था कि सारे आतंकवादी मुस्लिम हो सकते हैं, लेकिन सभी मुस्लिम आतंकवादी नहीं होते।
वैसे इतना तो होना ही चाहिए कि हम ऐसे कायॅक्रमों में जाएं तो तमाशबीन ही बने रहें, खुद तमाशा न बनें। ऐसे में व्यक्ति विशेष की ही नहीं, समाज, राज्य और राष्ट्र की भी बदनामी होती है।

Wednesday, March 5, 2008

हैप्पी मैरिज एनिवर्सरी टू बम-बम भोले


गुरुवार को महाशिवरात्रि है। आज के दौर में विशेष अवसरों पर एसएमएस और ई-मेल से आने वाले संदेशों की भूमिका बढ़ गई है और लोग अपने प्रियजनों को इस तरह के संदेश भेजना और पाना हमारी दिनचर्या में शुमार हो गया है। तो साहब, मुझे भी आज यानी बुधवार को ही एक मित्र का एसएमएस संदेश मिला--`भगवान शिव के जन्मदिन का पर्व महाशिवरात्रि आपके लिए मंगलमय हो´। संदेश पाकर मैं यह सोचने को विवश हो गया कि एक स्थापित मान्यता किस प्रकार हर अवसर पर लागू होने लगती है। जब मैंने उक्त मित्र को फोन करके मैसेज के बारे में पूछा तो उनका सहज उत्तर था कि भगवान राम के जन्म की खुशी में रामनवमी मनाई जाती है, भगवान कृष्ण के जन्म की खुशी में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है तो शिवरात्रि भी भगवान शिव के जन्मदिन पर ही तो मनाई जाती होगी। मैंने उनकी अज्ञानता का निवारण किया तो सोचा कि अधिकांश लोग इस तथ्य से अवगत होंगे, फिर भी कुछ लोग यदि नावाकिफ हों तो उन तक भी यह जानकारी पहुंचाई जानी चाहिए।
भगवान शिव की महिमा अपरम्पार है और देश के हर हिस्से में गली-मोहल्लों में हर चौराहे पर भगवान शिव के मंदिर इसके प्रमाण हैं। इनकी पूजा-अर्चना के लिए कोई विशेष तामझाम की आवश्यकता नहीं होती। हमारे आसपास सहज उपलब्ध आक-धतूरे के फूल, भांग, बिल्वपत्र चढ़ाने और जलाभिषेक मात्र से वे प्रसन्न हो जाते हैं। बात दीगर है कि जिनके पास उपलब्ध है, वे दूध ही क्या पंचामृत तक से शिव का अभिषेक करते हैं, सोने-चांदी के नाग-नागिन और आभूषण भी चढ़ाते हैं। धर्मशास्त्रों में शिव को इतना सरल बताया गया है कि उनका नाम ही भोला बाबा रख दिया गया और उनका क्रोध इतना प्रचंड है कि तीसरी आंख खुले तो प्रलय हो जाए।
भगवान शिव संभवत: ऐसे पहले देवता होंगे जिनकी शादी की वर्षगांठ पर इस तरह का उत्सवी माहौल होता है। हालांकि धर्मप्राणों की नगरी जयपुर को छोटी काशी कहा जाता है, इससे स्पष्ट है कि यहां भगवान शिव की भक्ति की रेटिंग क्या है। गुरुवार को भक्त यहां के प्रसिद्ध झाड़खंड महादेव, ताड़केश्वर महादेव, राजराजेश्वर महादेव, एकलिंगेश्वर महादेव मंदिरों के अलावा गली-मोहल्लों के शिव मंदिरों में औढरदानी भगवान भगवान भोले की आराधना में लीन रहेंगे।
कई शहरों में महाशिवरात्रि की शाम को शिव बारात की झांकी सजाई जाती है और तीन-चार किलोमीटर लंबा जुलूस निकाला जाता है। इसमें आगे-आगे वृषभ नंदी पर भगवान शिव विराजमान होते हैं और उनके पीछे उनके गणों और भूत-प्रेतों की बारात होती है। फिर उसके पीछे अन्य झांकियां और बैंड-बाजे, हाथी-घोड़ों का लवाजमा होता है। आयोजकों में शिव बारात को साकार करने की प्रतिस्पर्धा होती है। ऐसे दृश्य देखने के बाद बच्चा-बच्चा महाशिवरात्रि मनाने का उद्देश्य समझ जाता है और फिर मेरे मित्र ने जिस तरह का एसएमएस मुझे भेजा, इसकी गुंजाईश कदापि नहीं रहती।
मुझे मिले मैसेज को सुधार करते हुए मैं तो भगवान नीलकंठ को यही कहूंगा- `हैप्पी मैरिज एनिवर्सरी टू बम बम भोले´।
आप सब पर भगवान शिव और जगज्जननी पावॅती की मंगलमयी कृपा रहे, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ अपनी अल्पज्ञता को सावॅजनिक करने के लिए क्षमा चाहता हूं।