Saturday, October 26, 2019

गणित का ज्ञान : अभिशाप या वरदान


फेसबुक पर हम कुछ लिखते हैं और उसे लोग लाइक करते हैं तो मन खुश हो जाता है। दस-बीस कमेंट्स आ जाते हैं तो सीना बरबस ही छत्तीस इंच से छप्पन इंच का होने लगता है, लेकिन यदि कोई आपकी फेसबुक वॉल पर पोस्ट किए गए विचारों को लेकर घर आकर लानत-मलामत करने लगे तो फिर उसे लेकर जो कुछ होता है, उसे केवल महसूस ही किया जा सकता है। आज मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ। मैंने जो महसूस किया उसे शब्दश: तो नहीं बता सकता, फिर भी कोशिश करता हूं कि आभासी दुनिया के मित्र भी इससे दो-चार हो सकें। दरअसल एक बच्चे के मेडिकल प्रवेश परीक्षा-नीट में चयन को लेकर हाल ही मैंने अपने विचार फेसबुक पर पोस्ट किए थे। उस पोस्ट में हमारे जीवन में गणित की उपादेयता को रेखांकित करने की कोशिश की थी। बस वे सज्जन इसी बात को लेकर चिढ़े हुए थे। पोते-पोती की कई दिनों की ट्रेनिंग के बावजूद स्मार्टफोन के इस्तेमाल में उनका हाथ कुछ तंग है, सो वे मेरे फेसबुक पोस्ट से अपनी नाइत्तेफाकी जताने के लिए खुद ही हाजिर हो गए थे। उनका कहना था कि गणित ने सबका बेड़ा गर्क कर दिया है। हमारे जीवन में आज जो भी परेशानियां हैं, उसका एकमात्र कारण गणित ही है। जिसे देखो, दिन-रात गणित भिड़ाने में ही लगा रहता है। मैंने उसे छह बार फोन किया, उसने मुझे कितनी बार याद किया? मैं उसके यहां पिछले छह महीने में सात बार गया और वह मेरे यहां कितनी बार आया? मैंने उसके बेटे के बर्थडे पर ढाई सौ रुपये का गिफ्ट दिया था, और वह मेरे बच्चे के जन्मदिन पर तीस रुपल्ली की किताब टिका गया। मैंने उसकी बिटिया की शादी में हजार रुपये की शादी गिफ्ट की थी। और वह... न जाने कब से घर के कबाड़ में पड़ा क्रॉकरी सेट निर्लज्जता से टिका गया था। इतना ही नहीं, अपने दैनंदिन जीवन में आदमी हर पल हर काम होने वाले काम में लाभ-हानि का हिसाब लगाता रहता है। बच्चे भी आजकल करिअर का चयन करने से पहले पढ़ाई के बाद मिलने वाले पैकेज का हिसाब लगाते हैं। अध्ययन के फलस्वरूप होने वाले ज्ञान-अर्जन, विचारों के विकास और मानव-सेवा की भावना के बारे में किसी को सोचने तक की फुरसत नहीं है। प्रोफेशनलिज्म इस कदर हावी हो गया है कि खून के रिश्ते और दिल के संबंध भी इससे अछूते नहीं रहे। संतान अपने बूढ़े माता-पिता की जिम्मेदारी से पीछा छुड़ाने के फिराक में रहते हैं। गणित की वजह से होने वाली न जाने कितनी परेेशानियां उन्होंने गिना डालीं। उनके तर्कों ने मुझे भी सोचने पर विवश कर दिया। वाकई...हमने अपनी सोच को इतना संकुचित कर लिया है कि उदारता का भाव कहीं तिरोहित हो गया है, लेकिन इसमें गलती गणित की नहीं है। स्वार्थ के हावी होने से यह स्थिति उत्पन्न हुई है और जितनी जल्दी इससे उबर सकें, उतना ही अच्छा। 13 June 2018 Lucknow

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