परमाणु करार पर मंगलवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को संसद में विश्वासमत साबित करना था। देश ही नहीं, दुनिया की निगाहें टिकी थीं भारतीय संसद भवन पर, न जाने क्या होगा। दोपहर को मेरा भी मन हुआ, देखें, हमारे नेता कैसे जलवा दिखा रहे हैं लोकतंत्र के पावन मंदिर में। बुद्धू बक्से के सामने बैठ गया। संसद में भाजपा के अनंत कुमार बहस जारी रखे हुए थे और कमरे में मेरा बेटा चैनल बदलने की जिद पर अड़ा हुआ था। इसी बीच लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटरजी ने बताया कि अनंत कुमार के बोलने का समय पूरा हो गया और अब रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव परमाणु करार पर अपना पक्ष रखेंगे। संसद में जैसे ही वक्ता के सुर बदले, बेटे का सुर भी बदल गया। उसने भी लालू प्रसाद को को सुनने की इच्छा जाहिर की। और जैसा कि होता है, लालू ने जैसे ही बोलना शुरू किया, संसद में ठहाके गूंजने लगे। इस बीच आठ साल के मेरे बेटे ने सहज टिप्पणी की-पापा, लालू यादव लाफ्टर शो में क्यों नहीं जाते? वहां इनके होने से दशॅकों पर अच्छा रंग जमेगा। इस बालसुलभ टिप्पणी पर लालूजी को कैसा लगेगा, यह तो पता लगना मुश्किल है, लेकिन मुझे तो अच्छा नहीं लगा। जिम्मेदार पद पर आसीन लोगों का चरित्र यदि इस तरह सावॅजनिक विदूषक का हो जाएगा, तो देश का क्या होगा। एक बात औऱ, यदि लालू प्रसाद का स्वभाव विशुद्ध मजाकिया का होता, तो शायद इसे सहन भी किया जा सकता है, लेकिन चारा घोटाले में हुए भ्रष्टाचार में उनकी लिप्तता, देखते-देखते उनकी संपत्ति में बेशुमार बढ़ोतरी तथा उनके चिरशासनकाल में बिहार की बरबादी-ये सब मिलाकर जो तस्वीर दिखाते हैं, उनमें लालूजी को किसी भी रूप में लल्लू या भोला नहीं माना जा सकता। हंसी-ठिठोली एक सीमा तक तो सही होता है, लेकिन जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग यदि इस प्रकार के अपने भ्रष्ट आचरण पर मजाक का मुलम्मा चढ़ाते रहेंगे तो यह किसी भी सूरत में अच्छा नहीं होगा। वैसे, अवसान तो सभी का होना है, लालू के राजनीतिक जीवन का भी अवसान होगा ही और तब उनके लिए लाफ्टर शो जैसे आयोजन फायदेमंद साबित हो सकते हैं।