Wednesday, December 25, 2019

कर्मण्येवाधिकारस्ते...


गांव के अल्प प्रवास के बाद लखनऊ वापसी के लिए ट्रेन पकड़ने मुजफ्फरपुर पहुंचा तो हर तरफ नौजवान ही नौजवान नजर आ रहे थे। कल यहां सेना भर्ती रैली है। अलग-अलग गांवों-कस्बों-शहरों से आए युवा स्टेशन से लेकर प्लेटफॉर्म और फुट ओवरब्रिज तक पर झुंड में बैठे कल की रैली की तैयारी में मशगूल दिखे। वहीं कई युवा घर से लाए हुए मां के हाथों बने व्यंजनों का लुत्फ उठा रहे थे। कई लड़के किताब में भी सिर खपाए हुए थे। ऐसे में बरबस ही मेरी नजर फुट ओवरब्रिज की सीढ़ी पर बैठे इस नौजवान पर पड़ी। हाथ में कलम लिए हुए यह सामने रखी किताब में नजरें गड़ाए बड़ा ही तल्लीन था। ...न जाने किन हालात ने इसे ऐसी दशा में पहुंचा दिया।

महिमा जननी-जन्मभूमि की


जननी और जन्मभूमि की महिमा तो वेद-पुराण-उपनिषदों तक ने गाई है, लंका-विजय के बाद प्रभु श्रीराम ने अनुज लक्ष्मण को कहा था- यद्यपि स्वर्णमयी लंका लक्ष्मण में न रोचते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।। मगर माफी चाहता हूं, आज अचानक " जननी- जन्मभूमि" यह शब्द जेहन में आ गया। मेरा स्मार्टफोन भी हम सभी की तरह ही जननी... टाइप करते ही अपनी स्मार्टनेस का परिचय देते हुए जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी...फ्लैश करने लगा। लेकिन मैं तो आज जान बूझकर " जननी-जन्मभूमि" ही लिखना चाहता था। जी हां, ननिहाल या ममहर सही अर्थों में जननी-जन्मभूमि ही तो होती है, जहां हमारी जननी मां ने पहली बार अपनी आंखें खोली थीं। जीवन के करीब सत्तर वसंत देखने के बाद भी जहां लोग उसे उसके नाम से बुलाते हैं। ... और शादी के बाद करीब पांच दशक ससुराल में बिताने के बाद भी मायके के लोगों में उसके लिए वही पुराना स्नेह है। पीढ़ी बदल जाने से स्नेह की जगह सम्मान ने ले ली है। ... तभी तो मेन हाईवे पर उतरने के बाद मां के बाााा साथ अपने मामू के घर तक पहुंचने में बीस मिनट से भी अधिक लग गये। ... कौन कहता है कि भारत पुरुष प्रधान देश है, बिल्कुल नहीं... शक्ति के उपासक हम सदा मातृपूजक हैं। 04 Dec 2019

... तेरी बिंदिया रे


सफर जीवन का हो या ट्रेन का, जब लय बिगड़ जाती है तो कुछ अच्छा नहीं लगता। इस बार लोअर बर्थ पर आरक्षण मिला है, मिडिल बर्थ वाले सहयात्री की बैठने की इच्छा बलवती हो गई तो मुझे नींद से बोझिल अपनी आंखों को समझाना पड़ा। थोड़ी देर बाद दिखा कि मेरी पसंदीदा साइड लोअर बर्थ वाले सज्जन बैठे हैं तो मैं भी उनका बगलगीर बन बैठा। इसमें कई स्वार्थ एक साथ सध गये। खुली खिड़की से बाहर प्रकृति को निहारने का सुख। मोबाइल को ऑक्सीजन...इसकी सांसें भी टूटने ही वाली थी। मोबाइल फोन की कीमत जैसे जैसे बढ़ रही है, चार्जिंग वाला तार छोटा होता जा रहा है। ऐसे में लोअर बर्थ पर लगे पावर प्वाइंट से मोबाइल चार्ज करना मुश्किल हो रहा था। साइड लोअर बर्थ पर आने से यह समस्या भी हल हो गई। ट्रेन के लेट होने की उतनी चिंता नहीं है, जितनी ट्रेन से उतरने के बाद के सफर की फ़िक्र हो रही है। मन इसी उहापोह में खोया था कि अचानक खिड़की के कांच पर चिपकी बिंदिया पर नजर चली गई। बरबस ही सोचने लगा हूं इस बिंदिया के बारे में। न जाने उस रूपसी ने कितने पत्तों में से छांटकर इसे खरीदा होगा और फिर इसे चांद सरीखे भाल पर सजने का सौभाग्य मिला हो। यह भी संभव है कि किसी ने अपने प्रेमी को लुभाने के लिए बड़ी शिद्दत से इसे खरीदा हो।ऐसा भी तो हो सकता है कि किसी आशिक ने दिल में बसी अपनी माशूका के चेहरे पर चार चांद लगाने के लिए यह बिंदिया खरीदी हो। पुरुष के प्रेम से अलग महिलाओं का आपस में भी तो प्रेम-संबंध होता है। किसी भाभी ने अपनी ननद के लिए बिंदिया खरीदी हो या फिर ननद ने ही अपनी प्यारी भाभी के लिए इसे पसंद किया हो। यह भी संभव है कि कोई सासू मां गंगा नहाने गई हो या फिर किसी तीर्थ स्थल के प्रसाद के रूप में सौभाग्य के प्रतीक इस बिंदिया को अपनी बहू के लिए खरीदा हो। बिंदिया पुराण में खोया हुआ मैं यह सोचने को विवश हूं कि दुकान के काउंटर पर लगे कांच से निकलने और किसी सुंदरी के माथे पर सजने के बाद ऐसा क्या हुआ होगा कि यह बिंदिया फिर कांच पर चिपकने के हतभाग्य को प्राप्त हो गई। इसकी वजह खोज पाने में नाकाम रहने के बाद आप मित्रों पर ही यह दायित्व छोड़ रहा हूं। 02 Dec 2019

अभिनय के आचार्य का अवसान


पांचवीं-छठी कक्षा में आने के बाद कहानी के साथ नाटक भी हिंदी के पाठ्यक्रम में शामिल हो गया था। ऐसे में हम बच्चों के मन में यह ख्याल आया कि इस नाटक का मंचन किया जाए तो कैसा रहे। ...फिर क्या था ...कुछ दोस्तों ने प्लान बनाया और शुरू कर दी तैयारी। लुक-छिपकर 10-15 दिन के रिहर्सल के बाद दरवाजे पर ही तख्त जोड़कर और बिछावन के चादर का पर्दा बनाकर लालटेन की रोशनी में नाटक खेला गया। दर्शक भी आस-पड़ोस के परिवार वाले ही थे। उन्होंने सराहने में कंजूसी नहीं की। इसका असर हुआ कि कुछ दिनों बाद दिवाली की रात हमारी बाल मंडली ने एक और नाटक खेलने का प्लान बनाया। मंचन दरवाजे पर ही हुआ, लेकिन इस बार हम बच्चों ने मोहल्ले में सबसे 1-2 रुपये चंदा मांगकर किराये पर लाउडस्पीकर मंगवा लिया था। लाउडस्पीकर पर लोगों से नाटक देखने के लिए आने की गुजारिश का परिणाम यह हुआ कि अच्छी-खासी संख्या में दर्शक जुटे और सभी ने हम बच्चों की खुलकर तारीफ की। तब हमारे गांव में नवयुवक समिति के बैनर तले गांव के नौजवान और वयस्क दुर्गा पूजा पर होने वाले मेले में धार्मिक और सामाजिक नाटकों का मंचन किया करते थे। शायद उन लोगों को देखकर ही हमारे बाल मन में भी नाटक खेलने की इच्छा ने जन्म लिया हो। दिवाली पर हुए नाटक में दर्शकों से मिली सराहना से उत्साहित होकर हमारी बाल मंडली ने इसके अगले साल नवयुवक समिति से आग्रह किया कि हमलोग भी दुर्गा पूजा मेला में एक नाटक खेलना चाहते हैं। नवयुवक समिति के हां कहते ही मानों हमें मुंहमांगी मुराद मिल गई।मन में एक नये उत्साह का संचार हो गया। शाम को जल्दी पढ़ाई पूरी करने के बाद घर-घर जाकर सभी दोस्तों को साथ लेकर रिहर्सल के लिए पहुंच जाते। उसी दौरान पहली बार बतौर निर्देशक श्री नूनू झा जी से परिचय हुआ। अभिनय की बारीक बातें इतनी सरलता-सहजता से हम बच्चों को बताते कि उसे सीख लेना आसान हो जाता। आंगिक और वाचिक अभिनय पर बड़ी बारीक पकड़ थी उनकी। उनकी निभाई गई भूमिकाएं और उनके निर्देशन में खेले गए नाटक आज भी हमारे गांव ही नहीं, आसपास के दर्जनों गांवों के लोगों के लिए किंवदंती अथ च मील का पत्थर बने हुए हैं। गंगानाथ हुए गौण, नूनू झा नाम से ही पहचान श्री नूनू झा का असली नाम गंगानाथ झा था। हमारे यहां परिवार के सबसे छोटे बच्चे को प्यार से ‘नूनू’ कहने का चलन है। गंगानाथ झा भी भाइयों में सबसे छोटे थे, इसलिए परिवार के बड़े लोगों की जुबान से होते हुए गांव-घर में भी वे नूनू भैया, नूनू कक्का ही कहलाने लगे और समाज में उनका यही नाम प्रचलित हो गया। ...कि विद्यार्थी, नीक हालचाल? हाई स्कूल के बाद पहले पढ़ाई, फिर रोजी-रोटी के चक्कर में गांव छूट गया। गांव जाने का अंतराल हफ्ते-पखवाड़े से बढ़कर साल-छमाही तक पहुंच गया। जब भी गांव जाता, नूनू कक्का का आशीर्वाद लेना नहीं भूलता था। सबसे पहले यही पूछते...कि विद्यार्थी, नीक हालचाल? पिछले जून में गांव गया था तो सड़क पर ही टहलते हुए मिल गए थे। हालांकि इस बार हाथ में छड़ी आ गई थी। पूछने पर बोले, उम्र का असर तो पड़ता ही है। अभी गांव में एक मित्र से बात हुई तो पता चला कि नूनू कक्का नहीं रहे।....हमारे अभिनय के आचार्य का अवसान हो गया। ईश्वर से प्रार्थना है कि उन्हें अपने चरणों में शरणागति प्रदान करें। 16 NOV 2019

... और अब वैशाली का डंका


मगध और मिथिला के बाद अब केबीसी में वैशाली की विजय का पताका लहराया है। केबीसी के मंगलवार के एपीसोड में ट्रेनी जेल सुपरिटेंडेंट हाजीपुर के अजीत कुमार ने करोड़पति बनने का सौभाग्य हासिल किया। सदी के महानायक बिग-बी अमिताभ बच्चन भी अजीत कुमार के आत्मविश्वास से काफी प्रभावित दिखे। गौरव की इससे भी बड़ी बात है कि केबीसी के मौजूदा सीजन में चार प्रतियोगियों को करोड़पति बनने का अवसर मिला है। इनमें से तीन बिहार के हैं। 13 Nov. 2019