दीपावली के बाद जयपुर से लखनऊ लौटते समय रेलवे आरक्षण की प्रतीक्षा सूची लंबी होने के कारण धुकधुकी लगी थी। ईश्वर की कृपा से अंतिम समय में रिजर्वेशन तो मिल गया, लेकिन पूरी बर्थ नहीं मिल पाई। साइड लोअर बर्थ पर आधी सीट मिलने से मन में सहज चिंता व्याप रही थी कि कहीं वजनदार सहयात्री हुआ तो यात्रा में मुश्किल हो सकती है।
अपने लिए निर्धारित बर्थ पर बैठा ही था कि 25-26 साल का एक युवक जिसके पास काफी माल-असबाब था, बर्थ के नीचे सामान जमाने के साथ ही खुद भी जमकर बैठ गया। चूंकि ट्रेन में अच्छी-खासी भीड़ थी, और निकटवर्ती दो-तीन स्टेशनों तक जाने वाले यात्री बिना रिजर्वेशन के भी साधिकार कब्जा जमा लेते हैं, सो मैंने उस युवक से रिजर्वेशन के बारे में पूछा। उसने बड़ी आसानी से कंप्यूटराइज्ड ई-टिकट का प्रिंट आउट दिखाया, जिसमें वेटिंग सौ के ऊपर थी। उसके मोबाइल में बैलेंस नहीं था, सो पास बैठे एक अन्य यात्री ने अपने मोबाइल से उसका पीएनआर नंबर डालकर चेक किया तो पता चला कि रिजर्वेशन अब भी कन्फर्म नहीं हुआ था। ऐसे में उस यात्री (जो खुद भी रिजर्वेशन काउंटर का प्रतीक्षा सूची का टिकट लिए था) ने युवक को रेलवे के नियमों का हवाला देते हुए जनरल का टिकट लेने की सलाह दी। दरअसल रिजर्वेशन कन्फर्म न होने पर पैसा टिकट बनाने वाले के खाते में खुद-ब-खुद चला जाता है और ई-टिकट धारक यात्री की गिनती बेटिकट में होती है। लेकिन उक्त युवक ने इस सलाह पर ध्यान दिए बगैर ठसक से कहा कि वह रिजर्वेशन कन्फर्म न होने के बावजूद पहले भी ऐसे ही टिकट पर लखनऊ से बनारस तक का सफर कर चुका है।
ट्रेन अपने तय समय से रवाना हुई और लखनऊ तक के सफर में दो-तीन बार टीटीई भी हमारी बोगी में आया, लेकिन उसने उस युवक से टिकट मांगने की जरूरत नहीं समझी, फिर भला वह युवक टिकट दिखाकर ’आ बैल मुझे मार‘ जैसी जुर्रत क्यों करता। कुल मिलाकर टीटीई को रेलवे के नियमों से क्या लेना-देना। यात्रियों की सुविधा के अनुसार नियम-कायदे में सरकार की ओर से कितनी भी सख्ती और प्रावधान क्यों न किए जाएं, टीईटी का तो एक सूत्री कार्यक्रम खुद की जेब भरना ही होता है। वहीं, आईआरसीटीसी की साइट पर ई-टिकट बनाने का धंधा करने वाले नियमों से अनभिज्ञ यात्रियों को बेवकूफ बनाकर और सरकार को चूना लगाकर अपनी तिजोरी भरने में लगे रहते हैं। ऐसे में कबीरदास के इस दोहे
चाह मिटी, चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह।
जिसको कुछ नहीं चाहिए, वही शहंशाह॥
में थोड़े बदलाव की छूट लेकर यही कहना चाहता हूं :
नियमों को जो जानते, सदा ही भरते आह।
जो कुछ भी नहीं जानता, वही शहंशाह।।
Nov. 12 2018
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