Saturday, October 26, 2019

प्यार बांटते चलो...


प्यार बांटते चलो... रिश्तों में बढ़ती दूरी को लेकर कल फेसबुक पर कुछ लिखा था। कई लोगों ने मेरी भावनाओं से सहमति जताई और बतौर कमेंट खुलकर विचार रखे। पेश है एक कमेंट में प्रस्तुत विचार : 'अपना मान लेने से कोई अपना नहीं होता...जब तक वो सुख-दुख में आपके साथ न हो...अब लोगों की शादी और एंगेजमेंट की न्यूज फेसबुक और व्हाट्सएप की प्रोफाइल पिक्चर से मिलती है। ’ इसे पढ़ने के बाद मुझे लगा कि इस विमर्श को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। सो, एक बार फिर आपका कुछ कीमती समय जाया करने के लिए हाजिर हूं। गांव में बिताए बचपन के दिनों को याद करता हूं तो शादी के दौरान जब बारात लड़की के दरवाजे पर आती थी तो दूल्हे की एक झलक पाने के लिए रास्ते में दोनों ओर लोगों का तांता लगा रहता था। इनमें महिला-पुरुष सभी होते थे।...और बिहार में दूल्हा अन्य प्रदेशों की तरह घोड़ी पर नहीं आता, ऐसे में कार में बैठे दूल्हे के दीदार हर किसी को संभव भी नहीं हो पाते थे। फिर भी लोगों के उत्साह और उमंग में कहीं कोई कमी नहीं दिखाई देता था। हमारे यहां तब बारात शादी के अगले दिन भी रुकती थी। ऐसे में दूसरे दिन सुबह 11 बजे के बाद से ही दूल्हे को देखने के लिए गांव भर से झुंड की झुंड लड़कियों और महिलाओं का आना शुरू हो जाता, जो देर शाम तक जारी रहता। इनमें जाति, ऊंच-नीच और अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं होता। इसी तरह लड़के की शादी के बाद जब नई-नवेली दुल्हन ससुराल आती तो उसे देखने के लिए कई दिनों तक मजमा लगा रहता। बिना किसी खातिर तवज्जो की अपेक्षा के इन सभी का बस एक ही अरमान होता-खुशी की घड़ियों में सहभागी बनना। मशहूर शायर मुनव्वर राना कहते हैं : तुम्हारे शहर में मय्यत को सब कांधा नहीं देते हमारे गांव में छप्पर भी सब मिलकर उठाते हैं। आज हम लोग विभिन्न कारणों से गांव छोड़कर शहर में रहने को विवश हैं। इसके बावजूद हमें इस बात की चिंता किए बगैर कि कौन हमें अपना मानता है या नहीं, हमें खुद आगे बढ़कर एक-दूसरे के सुख-दुख में सहभागी बनने का अपना गंवारापन बचाए रखना है, तभी हम सही मायने में खुश रह पाएंगे। ...और फिर समाज और दुनिया में हर जगह खुशहाली ही खुशहाली होगी। 24 April 2019 Lucknow

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