Saturday, October 26, 2019

जी तो करता है, सल्फॉस खा लूं


अजी, आप गलत समझ रहे हैं। ऐसा मैं नहीं कह रहा। जब से ये सात शब्द सुने हैं, मैं खुद विचलित हूं। मन को बहलाने की हर कोशिश नाकाम हो जा रही है। ये शब्द रह-रह कर दिमाग को दही किए हैं। समझ नहीं आ रहा, इससे कैसे छुटकारा पाऊं। तुलसी बाबा कह गए हैं, कहेहु से कछु दुख घटि होई...सो सोचा कि अपने दर्द का यह गुबार फेसबुक पर ही मित्रों से साझा करूं। बुधवार को दोपहर बाद करीब साढ़े तीन बजे कपड़े प्रेस कराने गया था। प्रेस कराने के बाद जब पैसे दिए तो धोबी ने उसे सिर से लगा लिया। आम तौर पर वह धोबी सुबह नौ बजे आ जाता है और अब शाम ढलने वाली थी। सो सहज ही मैंने पूछ लिया कि क्या अब तक ‘बोहनी’ नहीं हुई। यह सुनते ही उसका दर्द फट पड़ा। बोला-क्या बताऊं साहब। जी तो करता है सल्फॉस खा लूं। मैंने उसे दिलासा देते हुए कहा कि काम में तेजी-मंदी चलती रहती है, इसे दिल से नहीं लगाना चाहिए। मैंने उसे तो समझा दिया लेकिन उसके शब्द शूल बनकर मुझे बींधने लगे। 26-27 के इस हंसमुख नौजवान के मन में आखिरकार इतनी निराशा क्यों घर कर गई। दुकान की छप्पर में खुंसे उसके मोबाइल पर कभी एफएम तो कभी मेमोरी कार्ड की बदौलत दिनभर गाने बजते रहते हैं। क ई बार देखता हूं, उसकी पत्नी शाम के समय दोनों बच्चों को लेकर दुकान पर आ जाती है। चार-पांच साल का बेटा जो इंग्लिश स्कूल में पढ़ता है, को वह अंग्रेजी के शब्द बखूबी समझाती है। पैरों में पैजनिया छमकाती दो-ढाई साल की प्यारी सी बिटिया पूरे वातावरण में संगीत घोल देती है। कमाई भी इतनी हो ही जाती होगी कि चार प्राणियों की दाल-रोटी चल जाए। फिर इस अवसाद और तनाव की वजह क्या है ? यह उस अकेले नौजवान की पीड़ा नहीं है। लगता है, जैसे हमारे समाज को ही अबूझे से अवसाद ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है। तभी तो होलिका दहन के दिन राजस्थान के सीकर में एक होनहार फोटोग्राफर ने मौत को गले लगा लिया। एक प्रतिष्ठित मीडिया ग्रुप में कार्यरत 34 साल के इस युवक को बेहतरीन फोटोग्राफी के लिए कई बार पुरस्कृत किया गया था। अब उसके वृद्ध माता-पिता, जवान पत्नी और पांच व तीन साल के बेटे-बेटी की देखभाल कौन करेगा। यदि अवसाद रूपी इस असुर का समय से संहार नहीं किया गया तो यह न जाने कितने युवाओं की जिंदगी लील जाएगा। 10 March 2018

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