Saturday, October 26, 2019

ससुरारि पियारि भई जब ते...


काफी दिनों बाद आज सुबह टपलू का फोन आया। अस्वस्थता और व्यस्तता के कारण उससे बात नहीं कर पाया था, सो मैं भी उसका हाल जानने के लिए काफी उत्सुक था। अभी कुछ दिनों पहले उसने बड़ी धूमधाम से अपनी इकलौती बेटी की शादी की थी। मैंने उसका हाल पूछा तो हां-हूं में जवाब देने के बाद वह देश-दुनिया और सियासत-चुनाव का मुद्दा उठातेे हुए घुमा-फिराकर बातें करने लगा। हालांकि मुझे उसकी आवाज कुछ बुझी हुई सी लगी। टपलू ने बताया , शदी के बाद बिटिया के रंग-ढंग ही बदल गए हैं। खुद तो कभी फोन करती नहीं, मैं या तुम्हारी भाभी जब कभी फोन करती हैं, तो ऐसे बात करती है, जैसे उसे बहुत जल्दबाजी में हो। उसने अपनेवॉट्सएप की डीपी तक से हमारे साथ वाली तस्वीर हटा दी। फेसबुक पोस्ट में भूलकर भी कभी हमलोगों का जिक्र नहीं करती। दरअसल सेंटिेमेंटल-संवेदनशील लोगों के साथ यही दिक्कत होती है। छोटी-सी बात को भी दिल से लगा बैठते हैं। मैंने उसे दिलासा दिया-भाई,, नई-नई शादी है। तुम्हें खुश होना चाहिए कि वह अपने जीवन साथी और परिवार केसाथ खुशहाल जिंदगी जी रही है। ...और फिर शादी के बाद युवक-युवती के स्वभाव में बदलाव कोई आज तो हुआ नहीं है। यह तो सदियों से होता रहा है। तभी तो तुलसी बाबा लिख गए हैं- ससुरारि पियारि भई जब ते। रिपु रूप कुटुंब भए तब ते॥ हां, पहले यह सब मन ही मन होता था ढंके-छिपे। सभी अपने काम में इतने व्यस्त रहते थे कि फुरसत किसे थी कि इन बदलावों पर गौर करे, लेकिन आजकल की आभासी दुनिया में सोशल मीडिया पर हर पल होने वाली अभिव्यक्ति सहज ही इस बदलाव का अहसास करा देती है। ऐसे में इसे दिल से लगाकर दुखी होना सही नहीं है। आभासी दुनिया से मिले इस दर्द की दवा भी वहीं मौजूद है। एक से एक कहानियां भरी पड़ी हैं, उन्हें पढ़ो और मस्त रहो। 09 April 2019 Lucknow

No comments: