सशक्त नारी, सशक्त समाज
बिहार के जिस क्षेत्र से मेरा ताल्लुक है, वहां वसंत पंचमी से ही होली की शुरुआत हो जाती है। बचपन में वर्षों अपने टोले के शिवालय में वसंत पंचमी पर फाग के गीत सुनता रहा। होली उमंग-उत्साह का त्योहार है। मगर औरतें आपस में ही होली खेलती हैं। हां, देवर-भाभी, साली-बहनोई और सलहज-ननदोई के बीच होली में यह वर्जना अवश्य ही टूट जाया करती है। मगर जहां तक होली के गीतों की बात है तो आम तौर पर हमारे यहां यह जिम्मा पुरुषों ने ही उठा रखा है।
भांजी की शादी के उत्सव में भागीदारी के लिए आज दोपहर पहुंचा तो महिलाओं की टोली शिव-चर्चा में लीन थीं। हमारे यहां महिलाएं शादी-विवाह के गीत गाते समय या प्रभु के भजन-कीर्तन करते समय ढोल-मंजीरे का उपयोग नहीं करतीं। उनके समवेत स्वर से जो मधुर संगीत निकलता है, उसके सामने किसी साज की जरूरत महसूस भी नहीं होती।
...तो यहां शिव चर्चा की पूर्णाहुति के बाद महिलाओं ने जब फाग गीतों की टेर छेड़ी तो मुझे सहज ही सुखद आश्चर्य का अहसास हुआ। पहले ही फाग गीत का आशय था कि भगवान शिव बड़े ही रंगरसिया हैं कि उन्होंने फागुन के महीने में गिरिराजसुता गौरी संग शादी रचाई। इसके बाद महिलाओं ने कई प्रचलित फाग गीत गाये, जिन्हें आज तक मैं पुरुषों के समवेत स्वर में ही सुनता रहा हूं। बहन के गांव में यह अभिनव पहल आश्वस्त करती है जहां नारी सशक्त है, वह समाज अवश्य ही सशक्त होगा।
24 फरवरी 2020
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