Tuesday, May 5, 2020

शब्दों का खेल... कभी कमाल, कभी मलाल

शब्दों का खेल : कभी कमाल, कभी मलाल

" बाल की खाल" मुहावरे का जन्म कैसे हुआ, यह तो पता नहीं, लेकिन हमारे शरीर से जुड़ा यह शब्द है ही ऐसा। आइए, आज बाल की खाल निकालते हैं। 

यह सिर की शोभा बढ़ाता है तो बाल, केश कहलाता है। आंखों के पास आकर यह कभी भौं दिखाने लगता है तो कभी पलकों के रूप में अपनी पहचान बताता है। चेहरे पर आने पर दाढ़ी बन जाता है तो नाक के नीचे आने से इंसान की प्रतिष्ठा का परिचायक बन मूंछ पर ताव देने लगता है। हाथ-पैरों में आने के बाद खुशियां मिलने पर रोम-रोम से दुआएं देता है तो कभी परेशानियों से घबराकर रोंगटे बन खड़ा हो जाता है। ...तो बाल की खाल निकालने के इस सिलसिले को अब यहीं रोकते हैं। इस पर फिर कभी बात करेंगे।

अब कुछ ऐसे शब्दों की चर्चा करते हैं, जो संदर्भ बदलने के साथ ही अपना अर्थ बदल लेते हैं।

"डिस्चार्ज" शब्द का इस्तेमाल यदि किसी की नौकरी के साथ होने पर तो सहज ही उस व्यक्ति की नाकाबिले माफी गलती और उसके बदले की गई कड़ी कार्रवाई का अहसास होता है। वहीं अस्पताल में भर्ती किसी मरीज के साथ जब " डिस्चार्ज" शब्द जुड़ता है तो यही निराशाजनक शब्द जीवन में नई आशा-उत्साह का संचार करने लगता है। 

छोटे बच्चे जब बड़ों के सवालों के जवाब देते हैं तो मन प्रफुल्लित हो जाता है। लेकिन वही बच्चा जब बड़ा होने पर माता-पिता की किसी बात का जवाब देता है तो इसे अनुशासनहीनता मान लिया जाता है। ... और यह जवाब यदि बहू ने दे दिया तब तो परिवार और समाज इसे अनुशासनहीनता की पराकाष्ठा कहकर परिभाषित करने में तनिक भी देर नहीं लगाता।

एकेडमिक और प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं में दिए जाने वाले जवाब कॅरिअर संवार सकते हैं। मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट में आजकल जितनी कड़ी प्रतिस्पर्धा है, उसमें एक-एक सवाल का जवाब परीक्षा में शामिल होने वालों के भविष्य के लिए निर्णायक बना रहता है। वही विद्यार्थी जब मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट पास करके नामी डॉक्टर बन जाता है और उसके पास कोई मरीज आता है और उसकी क्रिटिकल पोजिशन देखकर जब डॉक्टर जवाब दे देता है तो इसके साथ ही मरीज ही नहीं, उसके परिजनों की भी आशाएं दम तोड़ देती हैं।

ऐसे और भी शब्द हैं, जिनके अर्थ संदर्भ बदलने के साथ ही बदल जाया करते हैं। उनकी चर्चा फिर कभी...

14 फरवरी 2019

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