Thursday, May 21, 2020

सहानुभूति जताने का सलीका

सहानुभूति जताने का सलीका
कोरोना वायरस संक्रमण की वैश्विक महामारी के इस दौर में जब अमेरिका-इंग्लैंड जैसे देशों के तुर्रम खां कहलाने वाले शासक हार मान चुके हैं, तो हम भारतीयों की विवशता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। हालांकि ऐसे संकट काल में अकिंचन होते हुए भी हमारी सबसे बड़ी ताकत अपनों का हाल-चाल जानना अथ च अपनी कुशलता से उन्हें अवगत कराना है।
इसी स्वभाव के कारण कल सुबह अपने एक अग्रज मित्र को फोन किया था तो उन्होंने भाभी जी की तबीयत नासाज होने की बात कही। उन्होंने बताया कि सेहत संबंधी थोड़ी परेशानी होने पर फैमिली डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने ब्लड प्रेशर बढ जाने की बात कही और पहले से चल रही दवा की डोज थोड़ी बढ़ा दी। मैंने उनसे कहा कि इसमें चिंता की कोई बात नहीं है। आजकल तो आधी से अधिक आबादी लो या हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से परेशान है और इसकी दवा उनकी दिनचर्या में शामिल हो चुकी है। मित्र ने भी मुझसे सहमति जताई और बोले, डॉक्टर से दिखलाकर आने के बाद सब कुछ सही था, लेकिन आस-पड़ोस की कुछ महिलाएं श्रीमतीजी का हाल पूछने आईं और उनसे कह दिया कि हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों पर कोरोना का संक्रमण अपेक्षाकृत जल्द होता है। इसके बाद से श्रीमतीजी चिंता में घुली जा रही हैं।
मैंने मित्र को भरोसा दिलाया कि ऐसे ही किसी की बात में आकर अपनी सेहत बिगाड़ना अच्छी बात नहीं है। भाभीजी की चिंता बढ़ाने वाली महिलाएं कौन सी चिकित्सा विशेषज्ञ हैं कि उनकी बात को तवज्जो दी जाए। हां, आप अपने फैमिली डॉक्टर से सलाह अवश्य ले सकते हैं और मुझे पूरी उम्मीद है कि उनकी सलाह से भाभीजी के मन में बैठी दहशत दूर हो जाए।

उनसे बात करते हुए मुझे याद आ गई एक महिला की नासमझी से जताई गई सहानुभूति की वह बात जो एक  बुजुर्ग महिला के जीवन के अंत की वजह बन गई। हुआ यूं कि एक बुजुर्ग महिला की पाचन संबंधी परेशानियां जब नजदीक के शहर के डॉक्टरों की दवा के बावजूद महीने भर बाद भी दूर नहीं हुईं तो उनके दोनों बेटों ने  गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट को दिखाने का फैसला किया। वहां जांच कराने के बाद पता चला कि बुजुर्ग महिला के पेट में कैंसर है और वह भी अंतिम स्टेज में। ऑपरेशन करवाने से भी कोई विशेष लाभ की उम्मीद नहीं थी। गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट ने कुछ दवाएं लिख दीं और बुजुर्ग महिला के बेटों से कहा कि इससे तात्कालिक आराम मिल जाएगा, आगे ईश्वर की कृपा। हां, जितनी हो सके, इनकी सेवा कीजिए।   


 दोनों बेटे मां को लेकर घर आ गए और उन्हें कैंसर के बारे में कुछ नहीं बताया। दवा का असर कहें या सेवा का सुफल या फिर बेटों की प्रार्थना का कमाल, बुजुर्ग महिला के स्वास्थ्य में कुछ-कुछ सुधार होने लगा। समय अपनी गति से बीत रहा था कि अचानक उनके पास एक परिचित महिला का फोन आया। उसने सहानुभूति जताते हुए बुजुर्ग महिला से कहा कि ईश्वर भी कितना निष्ठुर है। आप तो जिंदगी भर दान-पुण्य, धर्म-कर्म करती रहीं। फिर भी आपको इतनी खराब बीमारी हो गई। बुजुर्ग महिला ने अनभिज्ञता जताई तो वह बोली कि शायद आपके बेटों ने आपको कैंसर की बात नहीं बताई। ... और उसी दिन बुजर्ग महिला ने जो खाट पकड़ी तो उनकी हालत बिगड़ती ही चली गई और आठ-दस दिन बाद उनकी अर्थी ही उठी।

ऐसी घटनाएं हमें बहुत कुछ सोचने को बाध्य करती हैं। किसी के प्रति हमदर्द तो होना ही चाहिए। यह मानव स्वभाव है। मगर संकट में पड़े किसी स्वजन-प्रियजन के प्रति सहानुभूति जताने के पहले सौ बार सोचना चाहिए। यदि उचित शब्द नहीं मिलें तो मौन सहानुभूति कहीं अधिक सार्थक और लाभप्रद है, बनिस्पत गलत शब्दों से सहानुभूति जताकर उसके जीवन के अंतिम पल को और नजदीक ला देने से से।

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