बड़े मंगल की खो गई रौनक
18-20 साल पहले की बात है। जयपुर रहने के दौरान एक मित्र के साथ किसी काम से परकोटे के बाजार में गया था। बृहस्पतिवार का दिन था। दोपहर का समय। चौड़ा रास्ता से गुजरते समय मित्र ने अचानक बाइक रोक दी और उतरने को कहा। इसके के साथ ही वह खुद भी उतर गए और बाइक खड़ी कर दी। मुझे अपने साथ आने का संकेत किया।
बरगद के एक बड़े वृक्ष के नीचे चबूतरे पर साईं बाबा के बहुत ही छोटे से मंदिर के सामने दस-बारह लोग लाइन में खड़े थे। हलवा-चने का प्रसाद बंट रहा था। जहां तक मैं याद कर पाता हूं, हम दोनों ही घर से भोजन करके चले थे और हमें निकले हुए बमुश्किल एक-डेढ़ घंटा ही हुआ होगा। सो भूख जैसी कोई बात भी नहीं थी। फिर भी मित्र का तर्क था कि इस तरह मांगकर खाने से व्यक्ति का अहंकार नष्ट होता है। उनकी बात में दम लगा, सो मैं भी उनके पीछे लाइन में लग गया और हम दोनों ने ही दोने में मिला प्रसाद ग्रहण किया। इसके बाद से जयपुर में जब भी कभी मौका मिलता, मंदिरों में अन्नकूट व पौषबड़ा महोत्सव आदि के अवसर पर अवश्य ही रुककर दोना प्रसाद ग्रहण करने को अपना सौभाग्य मानता।
उसके तीन-चार साल बाद मैं लखनऊ आ गया। यहां ज्येष्ठ महीने के मंगलवार को बड़ा मंगल कहा जाता है। इस दिन यहां मंदिर से लेकर मोहल्ले तक में जगह-जगह भंडारे का आयोजन होता है। विशेषकर हनुमानजी के मंदिरों की रौनक तो देखते ही बनती है। विपन्न से लेकर संपन्न तक, पैदल से लेकर बड़ी-बड़ी गाड़ियों में चलने वाले, बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी कतारों में लगकर भंडारे का प्रसाद लेते हैं।
एक तरह से यह लखनऊ का लोक उत्सव बन गया है। जबसे लखनऊ आया हूं, ज्येष्ठ महीने के किसी मंगलवार को खाना बनाने की जहमत नहीं उठानी पड़ी। मगर अफसोस, इस बार लखनऊ में बड़े मंगल की दशकों से चली आ रही परंपरा को कोरोना का ग्रहण लग गया है। लॉकडाउन के चलते मंदिरों के पट बंद हैं, भक्त घरों में कैद हैं, बड़े मंगल की रौनक कहीं गुम हो गई है। ऐसे में संकटमोचक हनुमानजी से यही प्रार्थना है कि मानवता पर आए कोरोना वायरस रूपी संकट का काल जल्द खत्म हो और आम जनजीवन पुराने ढर्रे पर लौट आए। जय बजरंगबली। 🙏🌹🙏
( चित्र पिछले साल लखनऊ में आवास के पास स्थित मंदिर के)
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