Tuesday, May 5, 2020

कहां ले जाएगी यह बेखयाली

कहां ले जाएगी यह बेखयाली

लखनऊ से गुलाबी नगर जाने के क्रम में मरुधर एक्सप्रेस अपनी लेटलतीफी बाज नहीं आती। इस बार पूरब का सफर भी कुछ वैसा ही रहा। मौसेरे भाई की शादी में बिहार जाना था। यात्रा के दिन दोपहर में ही भारतीय रेलवे ने संदेशा भेज दिया कि ट्रेन दो घंटे विलंब से नई दिल्ली से रवाना होगी। ..धीरे-धीरे विलंब का समय बढ़ता ही चला गया। खैर...रात 11:35 बजे लखनऊ पहुंचने वाली ट्रेन सुबह चार बजे लखनऊ पहुंची और मंथर गति से चलती हुई शाम करीब चार बजे मैं हाजीपुर पहुंच सका।

भारतीय रेल भले ही समय पालन का ध्यान नहीं रखती हो, लेकिन प्रकृति अपने नियमों से कभी समझौता नहीं करती। सूरज उगते समय पूरब की धरती पर पहले अपनी रश्मियां बिखेरता है तो अस्ताचल को जाते समय सबसे पहले वहीं से अपनी किरणें समेटने की शुरुआत भी करता है। सो...हाजीपुर पहुंचते ही शाम होने का अहसास होने लगा था। दिन ढलने के बाद वैसे ही गांव-देहात के लिए वाहनों की कमी हो जाती है। मेरे गंतव्य जंदाहा जाने के लिए इकलौती बस खड़ी थी। 

अनजान रूट होने के कारण मैंने टू बाई टू बस के गेट से  हुई सीट पर कब्जा जमा लिया ताकि आने वाले स्टॉपेज दिखते रहें। थोड़ी देर बाद 22-24 साल का एक नौजवान मेरे बगल वाली सीट पर आकर बैठ गया। मुझे तो शादी में पहुंचने की जल्दी थी, लेकिन बस का स्टाफ अपनी ही रौ में था। बस जब ठसाठस भर गई तो धीरे-धीरे सरकने लगी। बस जैसे ही थोड़ी रफ्तार पकड़ती, कोई हाथ दिखा देता। उस यात्री को गंतव्य तक पहुंचाने के परमार्थ और उससे मिलने वाले किराये के स्वार्थ के चक्कर में कंडक्टर झट बस रुकवा देता। आगे होने वाली देर के भय से मेरी धड़कनें बढ़ने लगतीं, लेकिन इस सबसे बेखबर मेरे बगल में बैठा नौजवान अपने स्मार्टफोन में खोया हुआ था।

 स्क्रीन पर नजरें गड़ाए वह बीच-बीच में कुछ बुदबुदाता भी था। ... और बस अपनी ही धुन में खर्रामा-खर्रामा बढ़ती जा रही थी। इसी बीच मेरे बगलगीर नौजवान सहयात्री के दूसरे फोन पर कॉल आई तो वह चैतन्य हुआ। बात करने के बाद उसने स्मार्टफोन को जैकेट के हवाले कर दिया। अब तक उसकी मोबाइल-साधना के प्रति मेरी जिज्ञासा इतनी बढ़ चुकी थी कि मैं पूछने से खुद को रोक नहीं सका। उसने बताया कि वह पबजी खेल रहा था। सुनकर मुझे झटका सा लगा। मैंने कहा, इसे खेलते हुए कई लोग जान गंवा चुके हैं, आपको डर नहीं लगता। वह बोला-मैं उतना भी एडिक्ट नहीं हूं। बस टाइम पास करने के लिए खेल लेता हूं।

‘ट्रेन में पबजी खेलते समय गलती से पी लिया केमिकल, मौत’ इस खबर पर नजर पड़ते ही बस में मेरे साथ बैठे उस युवक का पबजी खेलने का दृश्य अकस्मात ही मेरे जेहन में घूमने लगा। नए जमाने के इन नौजवानों की मोबाइल गेम के प्रति यह दीवानगी और बेखयाली न जाने उन्हें कहां ले जाएगी। ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दें और उनकी रक्षा करें।
12 दिसंबर 2019

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