Thursday, October 19, 2017

ममता का सिमटता साया


ज्ञानी और विद्वान भारतीय समाज को भले ही पुरुषप्रधान कहते रहें, लेकिन हमारे जीवन में हर जगह मातृपक्ष ही हावी दिखता है। नानी का प्यार दादी के दुलार पर, मां की ममता पिता के स्नेह पर और बहन का अनुराग भाई के अपनापन पर अक्सर भारी पड़ता है। मेरे मन में मातृपक्ष के प्रति अधिक आकर्षण की वजह शायद ननिहाल में मेरा जन्म होना है। नाना का निधन तो मेरे बचपन में ही हो गया था, इसलिए उनकी धुंधली-सी याद ही मेरे जेहन में बाकी है। हां, नानी से जुड़ी बहुत-सी बातें यदा-कदा बरबस ही याद आ जाती हैं। कन्हैया को माखन प्रिय था और नानी ने रोज-रोज भरपूर मलाई खिलाकर इस मोहन को मलाई का प्रेमी बना दिया। यही वजह है कि अपने घर में चूल्हे पर चढ़े दूध से मलाई निकाल कर खाने के चक्कर में कई बार हथेली जला चुका हूं। नानी के रहते हुए और उनके जाने के बाद भी मामियों ने दुलार भरे मनुहार से हमें नानी की कमी महसूस नहीं होने दी। कभी किसी चीज को लेकर ममेरे भाई-बहनों से झड़प होने पर हमेशा ही हमारा ही पक्ष लिया। पिछले बुधवार को बड़ी मामी के आकस्मिक निधन से ननिहाल से जुड़ी यादें बरबस ही ताजा हो आईं। सबके ननिहाल, हमारा ममहर आम तौर पर मां के मायके को ननिहाल के नाम से ही जाना जाता है। इसके पीछे शायद अवधारणा हो कि नाना-नानी के रहने तक ही ननिहाल से नाता रहता है। इसके बाद धीरे-धीरे कम होने लगता है। लेकिन दुनिया को गणतंत्र का पाठ पढ़ाने वाले बिहार के वैशाली की बात ही अलग है। वैशाली की स्थानीय बोली वज्जिका में ननिहाल को ममहर कहते हैं। इसमें आशावाद का भाव छिपा है। जहां तक मैं समझता हूं, इसके पीछे मान्यता है कि नाना-नानी के बाद भी ननिहाल का अस्तित्व और वहां से बना नाता खत्म नहीं होता। मामा-मामी और ममेरे भाई-बहनों के रहने तक भी संबंधों की गर्माहट कायम रहे, इसीलिए ननिहाल को ममहर कहा जाता है। 13 मई 2017

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