शक्ति स्वरूपा - 1
सबसे पहले शोभा की कहानी। जमींदार परिवार, चौपार मकान, जीप, लाइसेंसी बंदूक, नौकर-चाकर ...क्या कुछ नहीं था। अफसोस, मां बचपन में ही साथ छोड़ गई थीं। आज से करीब चार दशक पहले गांव में लड़कियों की पढ़ाई की माकूल व्यवस्था नहीं थी, सो तीन भाई-बहन में सबसे छोटी शोभा चाहकर भी प्राइमरी से आगे की पढ़ाई नहीं कर पाई। पिताजी ने अच्छा घर-वर देखकर बड़ी बेटी की शादी की। आस-पड़ोस के किसी व्यक्ति ने चुटकी ली, परिवार के मुखिया हैं, क्या जमकर पैसा लुटाया! पिताजी को बात चुभ गई। शोभा जब बड़ी हुई तो उन्होंने निहायत ही गरीब घर के बीए पास लड़के से उसकी शादी कर दी। लड़का मेहनती था और 12-1500 रुपये महीने पर प्राइवेट नौकरी कर रहा था। कुछ दिनों बाद पत्नी को भी शहर ले आया। अपना खर्च चलाने के साथ ही माता-पिता को मनीऑर्डर करना कभी नहीं भूलता।
शोभा ने अपनी गृहस्थी बखूबी संभाली। केरोसिन स्टोव पर खाना बनाना महंगा पड़ता तो लकड़ी या उपले पर खाना बनाती। खुद के बनाव-शृंगार की बात तो उसने कभी सोची ही नहीं। समय बीतता गया। दो बच्चे हुए। पति सुबह साढ़े सात-आठ बजे काम पर जाते तो रात नौ बजे तक ही लौट पाते। ऐसे में शोभा ने बच्चों की पढ़ाई का खास ध्यान रखा। होमवर्क पूरा कराने के साथ ही नियमित रूप से पैरेंट्स टीचर मीटिंग में जाकर टीचर्स से बच्चों की प्रगति के बारे में पूछती। बाकी हिसाब तो साल में दो बार आने वाली मार्क्सशीट से पता चल ही जाता। इसी का नतीजा है कि आज बड़ा बेटा बीटेक फाइनल ईयर में है। छोटा बेटा भी इसी साल 10 सीजीपीए के साथ सीबीएसई से दसवीं की परीक्षा पास करके मेडिकल की तैयारी कर रहा है।
शोभा ने साबित कर दिया है कि खुद अज्ञान के अंधियारे में रहकर भी संतान के भविष्य को ज्ञान के प्रकाश से जगमग किया जा सकता है।
(मेरा मकसद किसी महिला विशेष का प्रचार- प्रसार नहीं, बल्कि एक साधारण महिला में छिपी अपार क्षमताओं को सामने लाकर नारी मात्र की शक्ति को समाज में प्रतिष्ठापित करना है, लिहाजा नाम बदल दिया गया है ।)
22 September 2017
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