हमारे गांव के मिडिल स्कूल में हर शनिवार को सांस्कृतिक कार्यक्रम होता था। सभी विद्यार्थी बड़े हॉल में जमा होते। सभी मॉनिटर पहले ही अपने-अपने क्लास से प्रस्तुति देने वाले विद्यार्थियों के नामों की लिस्ट तैयार कर लेते थे। अपनी बारी आने पर छात्र-छात्राएं कविता, चुटकुले, लोकगीत, भक्ति गीत सुनाते थे। सामने विराजे प्रधानाध्यापक समेत सभी शिक्षक उनकी हौसला आफजाई करते। उस दिन भी कार्यक्रम की शुरुआत इसी तरह हुई थी कि अचानक एक शिक्षक खड़े हुए और घोषणा की - आज सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं, सीटी बजाओ प्रतियोगिता होगी। जो जितनी तेज सीटी बजाएगा, उसे उसी क्रम से पुरस्कृत किया जाएगा। एक के बाद एक विद्यार्थी अपने फन का जौहर दिखाने लगे। कोई अँगूठे और तर्जनी को मिला जीभ के नीचे दबाकर तो कोई तर्जनी और मध्यमा को मुंह में डालकर जोरदार आवाज निकालता तो कोई महज होठों से ही ऐसी सीटी बजाता कि तालियां गूंज उठतीं। मुझे सीटी बजाने की कला न आने का बड़ा अफसोस हो रहा था। खैर...कार्यक्रम संपन्न हुआ, लेकिन यह क्या ? स्कूल का चपरासी सुकन ठाकुर अचानक ही कनैल की छड़ियों की गट्ठर के साथ प्रकट हुआ। फिर प्रतियोगिता का एलान करने वाले शिक्षक ने सीटी बजाने वालों की जो पिटाई की, उसे याद कर आज भी रोएं खड़े हो जाते हैं।
दरअसल, हमारे स्कूल में सह शिक्षा की व्यवस्था थी। यानी लड़के-लड़की दोनों ही पढ़ते थे। एक दिन छुट्टी के समय किसी विद्यार्थी के सीटी बजाने पर उन शिक्षक महोदय से इसकी शिकायत कर दी थी। लड़कों की भीड़ में से सीटी बजाने वाले लड़के की तलाश आसान नहीं थी, इसलिए उन्होंने उसे खोज निकालने का यह अनोखा तरीका ईजाद कर लिया था और सीटी बजाने वाले सभी विद्यार्थियों की शामत आ गई थी।
अभी हाल ही उत्तर प्रदेश विधान मंडल में राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान सपा एमएलसी द्वारा सीटी बजाकर विरोध जताने की भद्दी कोशिश से यह घटना बरबस ही याद आ गई ।
18 मई 2017
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