Thursday, October 19, 2017

हारिए न हिम्मत


शक्ति स्वरूपा - 6 अफसर पिता ने जॉली को एमए तक पढ़ाने के बाद बड़े अरमानों से उसकी शादी जमींदार परिवार में इंजीनियर लड़के से कर दी। तब इंजीनियर से बेटी की शादी करना समाज में बहुत बड़ी बात समझी जाती थी। हां, सवर्णों के लिए सरकारी नौकरी की राह तब भी इतनी आसान नहीं थी, सो जॉली के पति को भी आजीविका के लिए दूसरे राज्य में ही शरण लेनी पड़ी। चूंकि उन्होंने उसी राज्य में इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी की थी और पढ़ाई में भी अच्छे थे, सो प्राइवेट ही सही, नौकरी मिलने में अधिक परेशानी नहीं हुई। कुछ दिनों बाद जॉली भी शहर आ गई। दोनों बेटों का कॉन्वेंट स्कूल में दाखिला करा दिया गया। पति काम पर चले जाते और बच्चे स्कूल। ऐसे में जॉली को अनजाने शहर में अकले घर पर रहने से बोरियत सी होती। उसने पति से कहकर नजदीक के ही स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली, लेकिन छह-सात घंटे की कड़ीमेहनत और उसके बदले नाममात्र की तनख्वाह को देखते हुए पति ने थोड़े ही दिनों बाद जॉली की नौकरी छुड़वा दी। दोनों बेटे शहर के नामी प्राइवेट स्कूल में हाई स्कूल की अंतिम सीढ़ी पार करने को ही थे। सब कुछ सही चल रहा था कि अचानक पति को गंभीर बीमारी ने घेर लिया। जॉली ने घर से अस्पताल तक पति की सेवा में दिन-रात एक कर दिया। इसके बाद भी लाखों रुपये खर्च करने के बावजूद उन्हें नहीं बचाया जा सका। जॉली की तो मानो दुनिया ही उजड़ गई। सामने अंधेरा ही अंधेरा था, लेकिन आंसुओं के सैलाब में बच्चों का भविष्य न बह जाए, इसलिए उसने हिम्मत का दामन थामना ही बेहतर समझा। दुबारा से स्कूल ज्वाइन कर लिया । परमपिता नाराज हुए तो पिता ने अपनी जिम्मेदारी समझी और संबल बनकर खड़े हो गये । एजुकेशन लोन ने भी राह आसान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दोनों बेटों ने पढ़ाई में जमकर मेहनत की और डिस्टिंक्शन के साथ इंजीनियरिंग करने के बाद नौकरी में लग गये हैं। इस तरह जॉली की हिम्मत को जगज्जननी दुर्गा की कृपा का आशीर्वाद मिलता रहा तो उसके जीवन को नया मुकाम जरूर मिलेगा। 27 September 2017

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