शक्ति स्वरूपा - 2
बचपन में जब अंगुली पकड़कर चलना सीखने का समय था, कविता के माता-पिता दोनों ही संसार छोड़ गए। परिवार में और कोई नहीं था, सो ननिहाल ही ठिकाना बना। अफसोस, नाना-नानी का स्नेह भी अधिक दिनों तक नहीं मिल सका। उनके बाद जिम्मेदारी मामा-मामी पर आ गई, जो कविता से जल्दी से जल्दी पीछा छुड़ाना चाहते थे। नतीजतन 13-14 साल तक होते-होते अधेड़ के साथ कविता की शादी तय कर दी। वह हर ऐब से भरा था। आए दिन शराब पीकर आता और कविता की पिटाई करता। इस बीच दो बेटियां भी हो गईं। पति का अत्याचार कम होने का नाम नहीं ले रहा था।
एक दिन पड़ोस की महिला ने अपनापन से टोका, तो दर्द का सोता फूट पड़ा। हिचकियां थमीं तो पड़ोसन ने पास के रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़कर शहर जाने की सलाह दी। अपने परिचित का पता भी दिया। मौका मिलते ही दोनों बेटियों के साथ कविता शहर आ गई। एकाध हफ्ते के अंदर दो-चार घरों में झाड़ू-पोंछा-बर्तन का काम मिल गया। जीवन की गाड़ी धीरे-धीरे सरकने लगी, पर दुर्भाग्य साथ कहां छोड़ता है। पता लगाते-लगाते पति शहर में भी पहुंच गया, लेकिन कविता ने उसे साथ रखने से साफ मना कर दिया। इसके बावजूद वह हफ्ते-दो हफ्ते में आ जाता और नशे में पत्नी को गालियां देने के साथ ही पैसे भी मांगता। लेकिन कॉलोनी के लोगों ने हड़काया, मारने के लिए दौड़े तो पति का आना बंद हो गया। इस बीच कविता के व्यवहार और विपदा से प्रभावित होकर एक परिवार ने अपने ही मकान में रहने की जगह दे दी। कविता ने बेटियों का एडमिशन कॉन्वेंट स्कूल में करवा दिया। दोनों ही बेटियां पढ़ने में बहुत ही अच्छी हैं, जिसकी तस्दीक हर परीक्षा में होती है। बेटियों ने मां को भी अपना नाम लिखना सिखा दिया है। नतीजतन कविता अब किसी कागज पर अंगूठा नहीं लगाती, दस्तखत करती है। सब कुछ सही चलता रहा तो वह समय के ललाट पर भी अपनी अमिट छाप जरूर छोड़ेगी।
23 September 2017
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