पुरुष कितना ही बलशाली हो जाए, सनातन परंपरा स्त्री को ही शक्ति का भंडार मानती है। यही वजह है वर्ष में चार बार चैत, आषाढ़, आश्विन और माघ के शुक्ल पक्ष में नवरात्र के दौरान शक्ति स्वरूपा मां भगवती की पूजा-आराधना की जाती है। इन चारों में शारदीय नवरात्र में चहुंओर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना के मंत्रों की गूंज सुनाई देती है।
व्यक्ति से समाज बनता है और कालांतर में किसी व्यक्ति विशेष की ओर से शुरू की गई पहल ही सामाजिक परिपाटी का रूप धारण कर लेती है। ऐसे में कई बार मेरे मन में यह खयाल आता है कि पहले पहल किसी एक व्यक्ति ने अपनी मां, बहन, पत्नी या बेटी के गुणों से प्रभावित होकर उसे देवी का दर्जा दिया होगा और फिर दूसरे लोगों ने भी उसका अनुसरण किया होगा। बीतते हुए समय के साथ यह परंपरा बढ़ती चली गई और फिर प्रतीक रूप में देवी-आराधना से जुड़ गई।
दुर्गा दुर्गति नाशिनी... दुर्गम स्थिति से जो पार लगा दे, वही दुर्गा है। अधिक दूर जाने की जरूरत नहीं है, हमारे आस-पड़ोस, जान-पहचान में ही ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्होंने विपरीत हालात के बावजूद हिम्मत नहीं हारी। अपने दमखम के बल पर परिवार को दुखों के सागर से उबार लाईं।
इस नवरात्र ऐसी ही नौ महिलाओं की कहानी। इनके नाम नहीं, इन्होंने जो मिसाल कायम की, वह हमारे लिए, हमारे समाज के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है। लिहाजा इनके नाम बदल दिए गए हैं ।
21 September 2017
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