कॉलेज में दाखिला लेने के साथ ही वह छात्र राजनीति में रुचि लेने लगा था। पारिवारिक पृष्ठभूमि कांग्रेस से जुड़ी होने के कारण एनएसयूआई में शामिल हो गया। गबरू जवान, तेज-तर्रार और विद्यार्थियों में लोकप्रियता ने ऐसा कमाल दिखाया कि जल्द ही जिला महामंत्री बना दिया गया। इसी बीच कॉलेज में छात्रसंघ चुनाव की घोषणा हो गई। पिताजी ने चुनाव लड़ने से साफ मना कर दिया था। सो खुद तो चुनाव में खड़ा नहीं हुआ, लेकिन प्रचार में भागीदारी से खुद को नहीं रोक सका। एक दिन छात्र नेताओं का जुलूस शहर से निकला। वह सबसे आगे प्रत्याशी के साथ खुली जीप में मालाओं से लदा हाथ जोड़े खड़ा था। जुलूस के रास्ते में ही पिताजी का दफ्तर था। नारेबाजी सुनकर दूसरे अधिकारियों-कर्मचारियों केसाथ वे भी बाहर निकल आए। बेटे को देखकर गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। शाम को घर पहुंचने पर बेटे की जमकर खबर ली। बेटे ने सामने तो कान पकड़ लिए, लेकिन जवानी में खून का उबाल रुक ताकहां है। इलेक्शन के दिन एक मिनी बस को रोका और लड़कों को कॉलेज पहुंचाने का फरमान सुनाते हुए खुद भी उसमें सवार हो गया। बस किसी दबंग की थी, सो स्टाफ ने रंग जमाने की कोशिश की, लेकिन उसकी एक न चली। जैसे ही बस आगे बढ़ी, सात-आठ पुलिस वालों को खड़ा देख हमारा छात्रनेता चलती बस से कूद गया। दरअसल उस इलाके का थानेदार दबंगों की पट्टे से बुरी तरह पिटाई करता था। इससे उसका नाम ही पट्टा सिंह पड़ गया था। पुलिस वाले बस को थाने ले गए और सभी को बिठा लिया। इस बीच हमारे छात्रनेता की आत्मा अपने साथियों को बीच मझधार में छोड़ देने को लेकर उसे धिक्कारने लगी। वह खर्रामा-खर्रामा थाने पहुंचा तो उसे देखते ही बस का ड्राइवर चिल्लाने लगा, सबसे बड़ा नेता यही हैं। इन्होंने ही बस रुकवाई थी और धमकी भी दी थी। पुलिस वालों ने नजरें तरेरीं तो हमारे छात्रनेता ने कहा-हां, मैंने ही रोकी थी। मैं बैठता हूं थाने में। हमारे साथियों को छोड़ दो। इन्हें वोट देना है। उसने पुलिस वालों पर धौंस जमाते हुए कहा कि अभी फोन आएगा तो तुम सबकी हेकड़ी निकल जाएगी। इसके बाद पुलिस ने विद्यार्थियों को छोड़ दिया और हमारा छात्रनेता और उसका एक साथी थाने में बैठे रहे। डेढ़ घंटे बीत गए, लेकिन न तो फोन की घंटी बजी और न ही कोई आया। इस बीच वोट डालकर लौटे एक छात्र ने हमारे नेता को आकर बताया कि एनएसयूआई वाले तुम्हारे पिताजी को फोन कर रहे हैं कि आकर बेटे को छुड़ा ले जाएं। यह सुनकर हमारे नेता के तन-बदन में आग लग गई। उसने आंखों ही आंखों में अपने साथी को इशारा किया और खिड़की के रास्ते कूदकर दोनों रफू चक्कर हो गए। पुलिस वालों ने पीछा भी किया, लेकिन पकड़ नहीं पाए। वह कॉलेज पहुंचा और एनएसयूआई के प्रतिनिधियों को जमकर खरी-खोटी सुनाई। साथ ही इस्तीफे का एलान भी कर दिया। अगले दिन स्थानीय अखबारों की सुर्खियां बनीं- जिला महामंत्री ने समर्थकों समेत एनएसयूआई छोड़ी। इसके बाद तो एनएसयूआई समेत कांग्रेस के कई स्थानीय और प्रदेश स्तर के नेता पहुंचे। खूब मान-मनौवल की, लेकिन फौलादी लोग अपना फैसला कब बदलते हैं। साथियों और सीनियर्स की दगाबाजी के चलते उसका मन ऐसा खट्टा हुआ कि उसने राजनीति से पूरी तरह तौबा कर ली।
31 मई 2017
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