Sunday, December 24, 2017

बस से बंगलोर -1

कल्पना बनी हकीकत स्कूल के दिनों में अमूमन हर परीक्षा में दो विषयों पर निबंध पूछे जाते थे। पहला, यदि मैं प्रधानमंत्री होता और दूसरा, मेरी पहली हवाई यात्रा। दोनों के ही जवाब विशुद्ध कल्पना पर आधारित होते थे। चूंकि गुरुजी के लिए भी ये दोनों ही विषय हकीकत से परे थे, इसलिए काम भर के अंक मिल ही जाते थे। सवा अरब देशवासियों की तरह पहला प्रश्न तो अब भी कल्पना में ही है, मगर हवाई सफर पिछले दिनों हकीकत में तब्दील हो गया। मेरे परम मित्र पप्पूजी Amrendra Mishra की बिटिया के एंगेजमेंट में बंगलोर जाना था। ट्रेन से जाने-आने में ही 90 घंटे से अधिक लग जाते, ऐसे में कम से कम हफ्ते भर की छुट्टी चाहिए होती। इसलिए समय के साथ ही पैसे बचाने के लिए चार महीने पहले ही एयर टिकट बुक करा लिया था। बाकी परेशानी क्रेडिट कार्ड ने दूर कर दी। हवाई जहाज तो दूर, अब तक हवाई अड्डा भी नजदीक से नहीं देखा था। ट्रेन से गुजरते हुए दूर से ही पटना, आगरा में हवाई अड्डे पर खड़े विमान ही देखे थे। ऐसे में मुझसे पहले हवाई सफर का लुत्फ उठाने वाले मित्रों से जरूरी जानकारी हासिल की। लखनऊ से सुबह छह बजे फ्लाइट थी, सो दफ्तर से काम खत्म करने के बाद रात दो बजे निकल गया। साथ काम करने वाले मित्र ने स्कूटी से अमौसी एयरपोर्ट ले जाकर छोड़ दिया। वहां रोशनी की जगमगाहट तो अच्छी-खासी थी, लेकिन इक्के-दुक्के सुरक्षाकर्मी के अलावा सन्नाटा पसरा था। टिकट और आधार कार्ड दिखाकर अंदर दाखिल हो गया। मोबाइल पर फेसबुक-वॉट्सएप के सहारे इंतजार के अलावा और कोई उपाय नहीं था। अधिक इस्तेमाल से स्मार्ट फोन की बैटरी कहीं दम न तोड़ दे, इसलिए कादंबिनी के पन्ने पलटता रहा। (क्रमश:) 16 दिसंबर 2017 ( 25 नवंबर 2017 के हवाई सफर का हासिल )

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