लखनऊ में घर के पास ही हलवाई की दुकान है। ऐसे में रविवार सुबह अमूमन जलेबी-समोसे का नाश्ता होता है। अभी थोड़ी देर पहले गया तो जलेबी नजर नहीं आई। अलबत्ता तरह-तरह की मिठाइयां अपनी उपस्थिति से रक्षाबंधन के पर्व का अहसास करा रही थीं।
समोसा अनमना सा एक तरफ उबासी ले रहा था। मैंने पूछा-क्या भाई, आज अकेले कैसे ? लुगाई ( जलेबी) कहां गई ?
यह सुनते ही समोसा बिफर पड़ा। बोला- क्या बताऊं साहब, इंसानों वाली बीमारी हमारे घरों में भी पैर जमा रही है । मायके के लोग आएं तो खुशियों की पूछो ही मत और ससुराल वालों को देखते ही मुंह फूला लेना। सुबह से जैसे ही मेरे रिश्तेदारों- रसमलाई, बालूशाही, पेड़े, बंगाली मिठाइयों को आते देखा, आंखें लाल-पीली करती बोली- मैं जा रही हूं मायके भाई को राखी बांधने।
मैंने काफी रोका। कहा-अपने घर में जब रिश्तेदार आए हों तो इस तरह जाना अच्छी बात नहीं है । वे क्या सोचेंगे। वैसे भी कल सुबह से भद्रा है। दोपहर बाद राखी बांधने का मुहूर्त है। तब तक अपने रिश्तेदार भी लौट जाएंगे। फिर अपन दोनों साथ चलेंगे। मुझे भी तुम्हारी छोटी बहन से मिले काफी दिन हो गये। इस बहाने उससे भी मिलना हो जाएगा । लेकिन साहब, वह तो मेरी बात क्या सुनती, मेरे पर्स से सारे पैसे निकाले और उड़न छू हो गई ।
मैंने समोसे को दिलासा दिलाया कि ऐसे दुखी होने से कुछ नहीं होगा । घर आए रिश्तेदारों की खातिर तवज्जो करो...पत्नी का क्या है... अगले रविवार तक लौट ही आएगी । तब तक मेरी तरह बैचलर लाइफ का आनंद लूटो। यह सुनकर उसका उदास चेहरा खिल उठा और मैं भी दुकान से दही लेकर लौट आया। दही-चिवड़ा उदरस्थ करने के बाद समोसे की दर्द भरी दास्तां आपलोगों से शेयर करने से खुद को नहीं रोक पाया।
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