Friday, August 14, 2020

दोस्ती का क्यूआर कोड

एलएस कॉलेज में बीए फर्स्ट ईयर की पढ़ाई शुरू ही हुई थी। विद्यार्थियों का अभी आपस में ढंग से परिचय भी नहीं हो पाया था। तीसरा-चौथा ही दिन रहा होगा। इंग्लिश की क्लास के बाद एक पीरियड लीजर था। इसके बाद साइकोलॉजी की क्लास थी। सो कई विद्यार्थी जाकर साइकोलॉजी की क्लास में बैठ गए। वहीं, कई विद्यार्थी डेस्क पर नोटबुक रखकर बाहर चहलकदमी कर रहे थे। 15-20 मिनट हुए होंगे कि द्वारपाल ने आकर बताया कि साइकोलॉजी वाली मैडम आज नहीं आएंगी। अंतिम पीरियड होने के कारण सभी विद्यार्थियों ने अपने-अपने घर की राह पकड़ ली। मेरी सीट के बगल वाली डेस्क पर एक नोट बुक रखी थी। मैंने थोड़ी देर इंतजार किया और फिर अपनी नोटबुक के साथ ही दूसरी डेस्क वाली नोटबुक भी उठाकर बाहर निकल आया और बरामदे में इंतजार करने लगा। साइकोलॉजी की क्लास के लिए निर्धारित समय से पहले एक विद्यार्थी आए। क्लास में सन्नाटा पसरा था। डेस्क से उनकी नोटबुक भी नदारद थी। उनकी आंखों में कई सवाल तैर रहे थे। तब तक उनकी नोटबुक पर लिखा नाम मैं देख चुका था। मैंने नाम लेकर उन्हें पुकारा और पूरी बात बताते हुए नोटबुक दी। वे बहुत खुश हुए। हम दोनों में परिचय हुआ। पता चला कि उन्होंने मुझसे दो साल पहले मैट्रिक की परीक्षा पास की थी और उसके बाद  टीचर्स ट्रेनिंग करने चले गए। वहां की पढ़ाई पूरी करने के बाद अब कॉलेज का रुख किया है। हम दोनों साथ ही कॉलेज से निकले। वे मुझे साथ लेकर छाता चौक स्थित बंशी स्वीट्स गए और क्रीम रॉल खिलाया। एक अन्य कॉलेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए दो साल मुजफ्फरपुर में रहने के बावजूद मैं पहली बार क्रीम रॉल का लुत्फ उठा रहा था। मैं जहां अपने परिवार से कॉलेज की पढ़ाई के सिलसिले में बाहर रहने वाला पहला लड़का था, वहीं उनके सबसे बड़े भैया पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी कर रहे थे, जबकि दूसरे बड़े भाई यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे थे और दोनों साथ ही रहते थे। इस वजह से भी हमारे सहपाठी मेरी तुलना में शहर के रहन-सहन से ज्यादा अच्छी तरह वाकिफ थे। वहीं उनके बात-व्यवहार में भी एक अलग सलीका दिखता था। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान एटिकेट्स से लेकर साहित्यिक अभिरुचि तक को विकसित करने में उनसे काफी कुछ सीखने को मिला। ईश्वर की कृपा है कि आज भी मैं उनके संपर्क में हूं और उनसे कुछ न कुछ सीखने का सुअवसर मिलता ही रहता है।  

कॉलेज की पढ़ाई के बाद नौकरी की जद्दोजहद शुरू हो गई थी। किसी भर्ती परीक्षा के लिए बैंक ड्राफ्ट बनवाने के लिए हाजीपुर में स्टेट बैंक में कतार में लगा था। इसी बीच एक हमउम्र नौजवान वहां आया। वह काफी परेशान दिख रहा था। मेरे पूछने पर उसने बताया कि वह बचपन से ही शिलांग में रहा है। पूर्वोत्तर से ही उसने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और अब शिलांग में प्राइवेट नौकरी कर रहा है। उसका पैतृक गांव वैशाली जिले में है, मगर उसे यहां के बारे में कुछ भी पता नहीं है। इसे संयोग ही कहेंगे कि हमारे गांव के समीपवर्ती बैंक के एक स्टाफ अब हाजीपुर की उसी शाखा में तबादला होकर आ गए थे और उनसे मेरा परिचय भी था। उनकी मदद से उस युवक का बैंक का काम अपेक्षाकृत जल्दी हो गया। तब तक मेरा भी बैंक ड्राफ्ट बन गया था। संयोग से अगले ही महीने मुझे एक भर्ती परीक्षा के सिलसिले में शिलांग जाना था और पूर्वोत्तर का वह इलाका मेरे लिए काफी अनजान और दुर्गम भी था। मैंने जब उससे यह बात बताई तब उसने बड़ी ही सहृदयता से अपना पता दिया। शिलांग जाने पर उनसे मिला। शहर से काफी दूर उनके घर जाने का सुअवसर भी मिला। वहां पूर्वोत्तर के ग्रामीण परिवेश से भी साक्षात्कार हुआ। उनके पिताजी पनबिजली घर में काम करते थे। पहली बार वहां टरबाइन को देखकर महसूस किया कि बिजली में परिवर्तित होने के दौरान पानी कितनी तेजी से चीखता है। अफसोस, उस समय मोबाइल का चलन नहीं था और लैंडलाइन फोन हर किसी के वश की बात नहीं थी, इसल‌िए संपर्क सूत्र छूट गया। हालांकि आज भी उनके साथ खिंचाई गई फोटो उनकी याद दिलाती रहती है। आशा है, जीवन में किसी न किसी मोड़ पर अवश्य ही दुबारा मुलाकात होगी। 

पांच-छह साल पहले की बात है, मरुधर एक्सप्रेस में जयपुर से लखनऊ आ रहा था। ट्रेन रात में बांदीकुई पहुंचती है। वहां मेहंदीपुर बालाजी के दर्शन के बाद लौटने वाले काफी श्रद्धालु यह ट्रेन पकड़ते हैं। सो उन  यात्रियों के आने से नींद बाधित न हो, इसलिए मैं बांदीकुई स्टेशन के बाद ही सोना मुफीद समझता हूं। उस बार भी सोने की तैयारी कर रहा था कि श्रद्धालुओं का एक समूह मेरे कूपे में आया। सभी अपना सामान जमाने के बाद गपियाने में लग गए। उनकी बातों से बेखबर मैं  सोने का उपक्रम करने लगा और न जाने कब नींद आ गई। सुबह जगने के बाद नया ज्ञानोदय के पन्ने पलट रहा था। इसी बीच ऊपर की बर्थ से एक सज्जन उतरे और मुझसे पत्रिका मांगी। बातों ही बातों में परिचय हुआ। पता चला कि वे इंटर कॉलेज के प्राचार्य हैं। हिंदी साहित्य  उनका विषय रहा है। फिर तो विभिन्न मुद्दों पर चर्चा शुरू हो गई। हम दोनों ने एक-दूसरे के फोन नंबर लिए। उनके पूछने पर मैंने बताया कि मैं भी फेसबुक पर हूं। हाथोंहाथ फ्रेंड रिक्वेस्ट के आदान-प्रदान के साथ कन्फर्मेशन की प्रक्रिया पूरी की गई। उनकी फेसबुक वॉल पर सारे आलेख रोमन इंग्लिश में थे। उन्होंने देवनागरी में न लिख पाने की परेशानी बताई तो मैंने अपनी अल्पज्ञता की सीमा में ही निदान सुझा दिया। उन्होंने वादा किया कि अब वे हिंदी में ही लिखेंगे। उनके पास अध्यात्म से लेकर साहित्यिक और जीवन दर्शन के ज्ञान का अकूत भंडार है। ...और तबसे रोज वे तड़के तीन से चार बजे तीन-चार आलेख अपनी फेसबुक वॉल पर पोस्ट कर देते हैं। इससे मेरी ही नहीं, मेरे जैसे सैकड़ों लोगों के जीवन जीने की राह हमवार होती है।  
 
कई अन्य मित्रों के ऐसे भी अनुभव पढ़ने-सुनने में आए हैं जब कुछ ऐसा संयोग बना जब लोग दो जान एक दिल बनकर सदा-सदा के लिए एक-दूसरे के हो गए। एक मित्र की सुनाई आपबीती याद करता हूं। अखबार में काम करने वाली एक लड़की रास्ते में अचानक आई बारिश में बुरी तरह भीगने के बाद दफ्तर पहुंची तो वहां उसके साथ काम करने वाले युवक ने अपना कोट उसे दे दिया। कोट की गरमाहट जीवन में ऐसी घुली कि दोनों आज एक आदर्श पति-पत्नी के रूप में जीवन यापन कर रहे हैं। ऐसे ही एक लड़की ने कॉलेज कैंपस में एक युवक से किसी टीचर की क्लास के बारे में पूछा। युवक ने ना में सिर हिला दिया। लड़की ने खुद जाकर देखा तो उन टीचर की क्लास चल रही थी। लड़की लौटकर आई और गुस्से में झल्लाकर बोली, क्लास तो चल रही है। युवक भी रौ में था। बोल पड़ा-मैं क्या द्वारपाल हूं कि सबकी जानकारी रखूं। बात आई-गई हो गई। लेकिन दोनों को एक-दूसरे को यह अदा ऐसी भाई कि दोनों अग्नि के गिर्द सात फेरे लेकर जनम-जनम के लिए एक-दूजे के हो गए। 
हम सभी के जीवन में पढ़ाई से लकर नौकरी तक, बस और ट्रेन के सफर से लेकर स्थान विशेष पर प्रवास तक, ब्लॉग से लेकर फेसबुक तक...ऐसे कई लोग मिले हैं जो जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं। जिनकी मदद से हमारी जिंदगी की गाड़ी फर्राटे भर रही है, वरना न जाने कैसे कहां हिचकोले खाती रहती। ऐसा महसूस होता है कि ऊपर वाले ने हम सभी के अंदर दोस्ती का क्यूआर कोड इंस्टॉल किया हुआ है। जिन दो लोगों के बीच दोस्ती का यह क्यूआर कोड मैच हो जाता है, वे सदा-सर्वदा के लिए दोस्ती के बंधन में बंध जाते हैं। क्या खयाल है आपका...जरूर बताइएगा।

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