Friday, September 1, 2017

एक पत्र नई पीढ़ी के नाम

स्वतंत्रता दिवस और जन्माष्टमी पर वॉट्सएप संदेशों की ऐसी रेलमपेल रही कि मोबाइल की हालत खस्ता हो गई। बेचारा बार-बार दम खींचने लगता। संदेशों में वीडियो, जिफ से लेकर एक से बढ़कर एक तस्वीरें तक थीं। इक्का-दुक्का टेक्स्ट मैसेज भी थे। आजकल हमलोगों की आदत इतनी बुरी हो गई है कि अपने पास आए मैसेज को फॉरवर्ड करना ही सुविधाजनक समझते हैं, लिखने की बला कौन पाले। ऐसे में जब टेक्स्ट मैसेज मिलता है, तो दिल को बड़ी तसल्ली होती है, लेकिन मेरे साथ कुछ उल्टा हुआ। जन्माष्टमी पर एक शुभकामना संदेश में खुद के लिए ‘परम श्रद्धेय’ लिखा देखकर अटपटा-सा लगा। मैंने ऐसे महान काम नहीं किए हैं, जिनके चलते मुझे श्रद्धेय कहकर संबोधित किया जाए। महज कुछ साल पहले जन्म लेने की वजह से तो कोई श्रद्धा का पात्र नहीं बन जाता। नई पीढ़ी कई मायने में ज्ञान और समझ के स्तर पर मुझसे काफी आगे है और हर पल मैं उनसे कुछ सीखने को तत्पर रहता हूं। इसी तरह वे मेरे अनुभव का लाभ बेझिझक कभी भी ले सकते हैं। दरअसल जहां श्रद्धा का भाव होता है, वहां दिल से दिल की दूरी बढ़ जाती है। छोटे-बड़े का अहसास एक तरह का दुराव पैदा करता है । मैं चाहता हूं कि दिल की भाव भूमि पर हम परस्पर स्नेह भाव से रहें। जहां दोनों पक्ष समान हो, न कोई जरा सा अधिक, न कोई जरा सा भी कम। हां, जब बहुत ही जरूरी हो तो नई पीढ़ी इस स्नेह में सम्मान का भाव मिला दे और बदले में मैं उनके प्रति स्नेह भाव में दुलार का समावेश कर दूं। बाकी समय एक-दूसरे के प्रति हमारा मित्रवत व्यवहार बना रहे। ... और फिर समय से पहले किसी को जबर्दस्ती उम्रदराज घोषित कर देना भी कोई अच्छी बात थोड़े ही है! 18 August 2017

4 comments:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 21 सितम्बर 2019 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

Sudha Devrani said...

वाह!!!
वैसे परम श्रद्धेय में श्रद्धा वाकई बहुत ज्यादा हो गयी मित्रवत व्यवहार के इच्छुक और इतना बड़ा भार !!!!
पर जो सुख मित्रता और समानता में है वो इतनी दूर की ऊँचाई में स्थित श्रद्धा में कहाँ.....
बहुत ही बड़ी सीख ...बहुत ही बड़ी बात....
श्रद्धेय नमन आपको...

Rohitas Ghorela said...

वाकई अच्छी बात नहीं है.
मित्रवत व्यवहार आज की जरूरत.

अंदाजे-बयाँ कोई और

रेणु said...

जहां दोनों पक्ष समान हो, न कोई जरा सा अधिक, न कोई जरा सा भी कम। हां, जब बहुत ही जरूरी हो तो नई पीढ़ी इस स्नेह में सम्मान का भाव मिला दे और बदले में मैं उनके प्रति स्नेह भाव में दुलार का समावेश कर दूं। बाकी समय एक-दूसरे के प्रति हमारा मित्रवत व्यवहार बना रहे। ... और फिर समय से पहले किसी को जबर्दस्ती उम्रदराज घोषित कर देना भी कोई अच्छी बात थोड़े ही है! --
बहुत सही मंगलम जी आपकी इस बात से अक्षरशः सहमत हूँ | आपका ये लेख बहुत बेहतरीन सोच का दर्पण है | सस्नेह आभार इस मौलिक दर्शन के लिए |