Friday, September 1, 2017

टपलू का टूर

वैसे तो वह मेरे दिल के करीब है, लेकिन संबंधों को बातचीत या फिर पत्र या फोन के माध्यम से सींचते रहने के मामले में अव्वल दर्जे का काइयां। कई बार ऐसा भी हुआ कि फोन करो तो 'सब ठीक है' के साथ ही बोल उठता है- फोन रखूं। ऐसे में मेरा भी मन खट्टा हो जाता है, लेकिन बचपन के दोस्त भुलाए भी तो नहीं जाते। सो अवसर विशेष पर शुभकामनाएँ देने के साथ ही हालचाल भी पूछ ही लेता हूं। भगवान झूठ न बुलाए, उसकी ओर से कभी ऐसी पहल नहीं होती । खैर, अभी हाल ही फ्रेंडशिप डे पर उसे फोन किया तो हालचाल बताने के साथ ही हत्थे से उखड़ गया। मैं अचंभे में पड़ गया। पूछा- क्या हुआ भाई ? वह झल्लाते हुए बोला - अरे, होना क्या है, तुम्हें वो टपलू तो याद होगा ? मैंने कहा- हां वो चंचल सा दुबला-पतला छोरा, जो हाई स्कूल में हमलोगों से तीन क्लास जूनियर था। वह बोला- हां भाई हां, वही। पिछले दिनों फेसबुक पर न जाने कैसे उसने मुझे ढूंढ लिया और उसके बाद से हफ्ते-दस दिन में याद करना नहीं भूलता। मैंने कहा- यह तो अच्छी बात है । वह बोला- अच्छी बात क्या ? तुम्हारी यही आदत बुरी है, बिना पूरी बात सुने फैसला सुना देते हो। जनाब एमटेक करने के बाद आजकल गुवाहाटी में अच्छे पद पर हैं। कमाई भी अच्छी है। मैं बीच में फिर बोल पड़ा- यह तो और भी अच्छा है। उसने कहा- अच्छा नहीं, खाक? पैसे होने से अक्ल थोड़े ही आ जाती है। टपलू ने दो दिन पहले फोन किया तो अपने गोवा टूर के बारे में बताने लगा। बेवकूफ गोवा भी गया तो पत्नी के साथ । अरे भाई, गोवा तो आदमी किसी धार्मिक अनुष्ठान के लिए जाने से रहा कि पत्नी के पल्लू से गांठ बांधकर जाना जरूरी है। गोवा में समुद्र के किनारे जब सौंदर्य का सागर हिलोरें मार रहा हो तो सिर पर सीसीटीवी कैमरा लटकाए रखने का क्या मतलब ? मैं तो पड़ोस के पार्क में भी जाना तभी मुनासिब समझता हूं जब अच्छी तरह आश्वस्त हो लूं कि श्रीमतीजी आधा-पौन घंटा से पहले अपने काम से फ्री न हो पाएंगी। मैं समझ गया, आग कहां लगी है और कॉलबेल बजने का हवाला देकर फोन काट दिया। 9 August 2017

No comments: