Friday, September 1, 2017

कन्हैया को कदम्ब का न्योता


" लीजिए... न-न करते सावन भी बीत गया । शिव मंदिरों से रोजाना रुद्राभिषेक के दौरान सुनाई देने वाले मंत्रों की गूंज आज नहीं सुनाई दी। कल ही रक्षाबंधन ने संकेत कर दिया था कि सावन बीता जाए। समय के पहिये में कौन ब्रेक लगा सका है । ...लेकिन साहब, आशा पर ही आकाश टिका है । कोई बात नहीं... प्यार का महीना सावन बीत गया तो अधीर होने की कोई बात नहीं है । प्यार का संदेश देने वाले हम सबके प्यारे कृष्ण कन्हैया के जन्म का महीना भादो आ गया है । हम सब मिलकर इसका स्वागत करें । प्रभु श्रीकृष्ण ने मुझे कितना प्यार दिया, बता नहीं सकता। द्वापर युग बीते हजारों साल हो गये, लेकिन आज भी कहीं बांसुरी बजैया का किस्सा छिड़ता है तो मेरी चर्चा आ ही जाती है। कदम्ब के पेड़ पर लगे झूले पर कन्हैया का झूलना...उसकी स्मृति मुझे आज भी रोमांचित कर देती है । मैं अकिंचन क्या कर सकता हूं। मेरे वश में है भी क्या ? लेकिन दोस्ती निभाने का जो संदेश सुदामा के मित्र ने दिया था, उसे भूला नहीं हूं । मुरली वाले के स्वागत में मैंने राह पर फूल बिछा दिए हैं। उसके पैर बड़े कोमल हैं न ? " जी, आज सुबह घर से निकलते ही पार्क के बाहर काली सड़क पर पीले फूलों की पंखुड़ियों का बिछौना दिखा तो बरबस ही आंखें ऊपर उठ गईं। फिर कदम्ब ने मुझे जो कुछ कहा, सोचा आप मित्रों को भी बता दूं। काश! उन फूलों की खुशबू भी आपसे बांट पाता।

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