कल सुबह किशनगंज के एक मित्र का फोन आया। वे आजकल झारखंड में हैं। आवाज कुछ परेशानी भरी थी। बता रहे थे कि किशनगंज में घर में छाती भर से ऊपर तक पानी घुस आया है । वहीं से बीटेक की पढ़ाई कर रहा बेटा अकेले वहां है। मैंने बच्चे को फोन लगाया तो कनेक्ट नहीं हो पाया । बाढ़ की वजह से बिजली न रहने से बैटरी खत्म हो गई थी शायद। फिर ऐसे मौसम में नेटवर्क की भी सांसें उखड़ने लगती हैं।
करता भी तो क्या ? स्मृति पटल पर किशनगंज प्रवास के दौरान बिताया एक-एक पल घूमने लगा। वर्ष 1991 की बात है । संयोग कुछ ऐसा बना कि मुझे किशनगंज जाना पड़ा। तय हुआ था कि चार-पांच महीने वहां रहूंगा। जून का महीना... गांव में भीषण गर्मी। हाजीपुर से शाम को बस पकड़नी थी। शाम करीब सात बजे बस रवाना हुई। सोते-जगते सफर कट रहा था । अचानक संगीत की तेज स्वर लहरियों से नींद खुली। भोरपता चला, दालकोला में बस भोजपुरी गीत वातावरण में मस्ती घोल रहे थे। वहां से बस चली तो मौसम ही नहीं, नजारे भी बदल गये थे। सड़क के दोनों किनारे खेतों में भरा पानी। धान और पटसन की फसल की हरियाली । रिमझिम फुहारों के बाद मूसलाधार बारिश तक ने हमारा इस्तकबाल किया।
वहां जाने के बाद लोगों ने इस अपनापन के भाव से मुझे अपनाया कि तीन साल से अधिक वहां रहा। इस दौरान कभी भी घर से दूर होने का अहसास नहीं हुआ । होली-दिवाली-ईद से लेकर दुर्गा पूजा तक की न जाने कितनी यादें जेहन में आज भी ताजा हैं। कुल मिलाकर कहूं तो किशनगंज के साथ जुडे किशन-कन्हैया के प्यार के संदेश को जीना, उसे निभाना वहां के लोग जानते हैं।
अब जब सारा विश्व उस सर्वशक्तिमान कृष्ण का जन्मदिन कृष्णाष्टमी मनाने की तैयारियों में जुटा है, मैं वंशी बजैया से प्रार्थना करता हूं कि किशनगंज पर आई इस विपदा को दूर कर दे।
14 August 2017
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