Friday, November 30, 2007

जीवन का गणित, कैसे छूटे पीछा

कविताओं के प्रति शायद मेरा मोह कुछ बढ़ गया है, सो प्रस्तुत है मेरे पसंद की एक और कविता। गणित से हम सबका साबका पड़ता है और अधिसंख्य इससे पीछा भी छुड़ा लेते हैं किसी तरह, लेकिन गणित जीवन में कभी पीछा नहीं छोड़ता।
जयपुर के ही कवि गोविंद माथुर की इस कविता में जीवन से जुड़े गणित को सधे हुए शब्दों में बखूबी उतारा गया है। जयपुर से प्रकाशित हिंदी अखबार के २५ नवंबर को प्रकाशित रविवारीय परिशिष्ट में यह कविता छपी। आपको यदि अच्छी लगे तो रचनाकार को धन्यवाद ज्ञापित करें, अच्छी नहीं लगे तो इसका जिम्मेदार मैं हूं--

कला में गणित

मैं गणित में बहुत कमजोर था
यदि मेरी गणित अच्छी होती
शायद मैं इंजीनियर होता
विज्ञान वगॅ में अनुत्तीणॅ होते रहने पर
मैं कला वगॅ में आ गया
विश्वविद्यालय की परीक्षाओं में
उत्तीणॅ होता चला गया
मुझे मास्टर ऑफ आट्सॅ की
उपाधि भी मिल गई
पर गणित में कमजोर ही रहा
बीज गणित एवं रेखा गणित से
तो मैंने छुटकारा पा लिया पर
जीवन की गणित में फंस गया
संबंधों में गणित/ मित्रों में गणित
सम्मान में गणित/अपमान में गणित
पुरस्कार में गणित/तिरस्कार में गणित
साहित्य में गणित/कला में गणित
मेरा सोचना गलत था
गणित अच्छी होने पर
इंजीनियर ही बना जा सकता है
सच तो ये है कि
कुछ भी बनने के लिए
गणित अच्छी होना जरूरी है

4 comments:

अनूप शुक्ल said...

आखिर गणित की मौलिक समझ आ ही गयी आपको।

DUSHYANT said...

mujhe dohree khushee hui hai ise padhkar
shukriya

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

गोविन्द माथुर की दूसरी सारी कविताओं की तरह यह कविता भी अपनी सादगी में मारक है. आपने इसे प्रस्तुत किया, बधाई और

suresh said...

Namaskar
Aapne bahut achchhe leekh lete hai.

Shukriya

Suresh Pandit, Jaipur