-सांविरया-का जलवा कब का खत्म हो चुका है और भारत कुमार फेम मनोज कुमार पर अनावश्यक छींटाकशी के कारण-ओम शांति ओम-का भी देशभर में-ओम नमः शिवाय- हो रहा है। ऐसे में -भूल-भुलैया- की चरचा अब बेमानी सी लगती है। आपका ऐसा मानना जायज है, लेकिन मैं भी क्या करूं, मेरे मन में विचारों के जो गुबार उठ रहे हैं, उनसे तो अब दो-चार होना ही पड़ेगा।
हुआ यूं कि बेटेजी ने कॉमेडी की दुहाई देकर-भूल-भुलैया-दिखाने की जिद की। सिनेमाहॉल के परदे पर तो फिल्म देखना महानगरों में मध्यवरगीय परिवार के वश में रहा नहीं, भला हो उनका जिन्होंने बीच का रास्ता निकाल दिया है। दाम भी कम खरचो और मजे भी पूरे ले लो यदि आपकी किस्मत से सीडी की प्रिंट सही हो। तो साहब, मैं भी ले आया सीडी और अवकाश के दिन देख डाली पूरी फिल्म। प्रियदशॅन के निरदेशन में असरानी, परेश रावल, अक्षय कुमार, विद्या बालान व अन्य कलाकारों ने अपनी भूमिका को बखूबी अंजाम दिया और हंसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन मुझे तो इस फिल्म में कुछ और ही दिखा---कुछ और ही संदेश मिला। आइए, आप भी देखें यह नजारा मेरी नजरों से और महसूस करें इसकी शिद्दत को...।
विज्ञान ने विकास के कितने ही आयाम स्थापित कर दिए हों, भारतवंशी सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष की सैर कर सकुशल धरती पर लौट आई हों, लेकिन आज भी हमारे देश के गांवों में डायन के नाम पर भोली-भाली महिलाओं को सरेआम नंगा कर घुमाया जाता है, मारा-पीटा जाता है तथा दूसरी अमानवीय यातनाएं दी जाती हैं। भूत ने हमारे देश का न केवल भूत (अतीत) बिगाड़कर रख दिया, बल्कि वतॅमान को भी अपनी जद में लिए हुए है, अब भी हम नहीं चेते तो यह हमारा भविष्य भी बरबाद करके रख देगा।....और यह सब होता है उन पोंगापंथियों के इशारे पर जिनका न तो विज्ञान से कुछ लेना-देना है और न ही मनोविज्ञान से। असामान्य मनोविज्ञान को जिस बारीकी से इस फिल्म में समझाया गया है, वह काबिले तारीफ है। दरअसल मनोविकारों के कारण ही कल की आई नई-नवेली दुल्हन अपनी ससुराल के सात पुरखों के नाम गिनाने लगती है, और उस पर प्रेतबाधा का प्रकोप मानकर तथाकथित तांत्रिक अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं। इसकी आड़ में मोहल्ले की किसी भोली-भाली लाचार महिला को प्रताड़ित करने का अंतहीन सिलसिला शुरू हो जाता है। मैं तो चाहता हूं कि ऐसी फिल्में बननी चाहिए, जिनसे समाज सुधार की दिशा में साथॅक संदेश जाए। ...फिर जब --चक दे इंडिया--को टैक्सफ्री किया जा सकता है, तो--भूल-भुलैया को क्यों नहीं। जब--चक दे इंडिया--से प्रेरणा लेकर खिलाड़ियों का तथाकथित रूप से कायाकल्प हो सकता है तो --भूल-भुलैया--देखकर सदियों से भूत-प्रेतबाधा के संताप से मुक्ति पाकर हमारे समाज का कायाकल्प क्यों नहीं हो सकता। ....आमीन...
1 comment:
आपकी चिंता जायज है
पता नहीं फिल्म वाले कॉमेडी के नाम पर पता नहीं कहां कहां से ये चूचीपंथी करते रहते हैं।
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