Thursday, November 1, 2007

सपने में हकीकत से रू-ब-रू


भारतीय मनीषियों ने शकुन विचार पर कई सारे ग्रंथ लिखे हैं, जिनमें सपनों के फलाफल पर काफी कुछ कहा गया है। आधुनिक मनोविश्लेषक फ्रायड ने भी चेतन--अवचेतन--और अचेतन का आधार लेकर सपनों के कारणों का बड़ा ही गहन विश्लेषण किया है।
तो आइए, आज आपको भी ले चलता हूं सपनों की दुनिया में।
आज के जमाने में जब कभी पुलिस की बात चलती है तो हमारे जेहन में पुलिस की जो छवि उभरती है, वह कामचोर, तोंदू, भ्रष्टाचारी और रौब जमाने वाले की ही होती है। आम आदमी या तो उसकी घुड़की से खौफजदा रहता है या फिर निकम्मेपन से खफा। कवियों के व्यंग्य प्रहार हों या कारटूनिस्ट की कूची, वे कभी भी पुलिसमैन को नहीं बख्शते। इसमें उनकी कोई गलती नहीं होती, न ही वे किसी पूरवाग्रह से ग्रस्त होते हैं। हालात ही ऐसे हैं कि सुस्ती और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी पुलिसिया व्यवस्था ने इसे हीरो से विलेन की कतार में ला खड़ा किया है। ऐसा नहीं है कि कतॅव्यपरायण पुलिसवाले हैं ही नहीं, ऐसे गिने-चुने चरित्र हमारे समाज में आज भी हैं और वे रोल मॉडल भी हैं। उनके साथ कुछ गलत होता है तो इलाके की पूरी जनता उनके साथ आ खड़ी होती है।
यह क्या, मैं सपना सुनाते-सुनाते कहानी सुनाने लगा। वापस आता हूं सपने पर। हां तो मैंने देखा कि मैं एक व्यस्ततम बाजार में मित्रों के साथ चाय की थड़ी पर बैठा हूं। अचानक पुलिस की जिप्सी आकर रुकती है, उसमें एक सबइंस्पेक्टर टाइप का खाकी वरदीवाला उतरता है तथा काफी तेजी में लहराते हुए आ रहे साइकिल सवार किशोर को रोककर उसके सामने सवालों की बौछार लगा देता है। साथ में यह नसीहत भी कि वाहन कोई भी चलाओ, सावधानी तो रखो ही, अन्यथा हादसे तो राह में मुंह बाए खड़े रहते हैं।
एक पुरानी सी मोपेड खड़ी है। उस पर नए मोबाइल हैंडसेट्स से भरे दो धैले लटक रहे हैं। पुलिस वाला उसके वारिस को आवाज लगाता है, काफी देर बाद बदहवास सा एक अधेड़ गलियों में से निकलता है तो वह एसआई उसे कहता है कि इस तरह कीमती सामान को लावारिस छोड़ना क्या उचित है। यदि आपका सामान चोरी चला जाएगा तो आप पुलिस व्यवस्था को दोष दोगे, कुछ तो आपका भी फजॅ बनता है।
माहौल में सन्नाटा सा छा जाता है। लोग खुसर-फुसर करते हुए पुलिस वाले की भूमिका पर बातें करने लगते हैं। इसी बीच पुलिस वाला हमारे बीच चाय की थड़ी पर आकर बैठ जाता है और हमें बताने लगता है कि हम पुलिस वालों ने खुद ही अपनी छवि बिगाड़ ली है। आज समाज में हमारी जो छवि है, उसके जिम्मेदार भी हमीं हैं। यदि पुलिस चौकस और चुस्त होकर दिलेरी से अपना काम करे तो जनता भी उसे दुश्मन नहीं दोस्त मानकर अपनी परेशानियां बता सकती है, अपराधियों को पकड़वाने में मदद कर सकती है। कद्र का कारवां कतॅव्यपरायणता की राह से होकर गुजरता है। यदि पुलिसवाले अपनी ड्यूटी को तरीके से अंजाम दें तो कोई शक ही नहीं समाज में उनकी इज्जत होगी।
इसी बीच मेरी नींद खुल गई। सपने में दी गई पुलिसवाले की सीख पर यदि हकीकत में अमल किया जाए तो वाकई व्यवस्था सुधर सकती है। ऐसी कामना तो हम करें ही। अंत में उधार की पंक्तियां लेकर यही अजॅ करूंगा.......
जो अब भी नहीं गौर फरमाइएगा,
तो बस हाथ मलते ही रह जाइएगा।

1 comment:

mayamrig said...

iqfyl O:oLFkk ij fVIi.kh