Wednesday, November 7, 2007

कैसे मना पाएंगे दिवाली


बड़ी अजीब बात है। अपने देश में हर कोई अपने-अपने तरीके से अपनी दुनिया को रोशन करने की जुगत में लगा हुआ है। अभी पिछले दिनों अखबारों में खबर पढ़ी कि लंदन में भी दिवाली फेस्टिवल मनाया जा रहा है और मैं हूं कि इसी चिंता में घुला जा रहा हूं कि कैसे हम मना पाएंगे दिवाली, किस मुंह से खाएंगे मिठाई। ....और घृष्टता की हद ये कि आपको भी खुशी के इस मौके पर हास्य-व्यंग्य की फुलझड़ियों की बजाय इन नीरस शब्दों को पढ़ने के लिए विवश कर रहा हूं।
एक तथ्य तो यह है कि सेंसेक्स आसमान छू रहा है, मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी, एल. एन. मित्तल, वो डीएलएफ वाले , विप्रो वाले अजीमजी और ऐसे कितने उद्योगपति सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं, भारत में अरब-खरबपतियों की संख्या बढ़ती जा रही है, लेकिन गरीब हैं कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहे। या तो सरकारी योजनाएं मन से लागू नहीं की जातीं, या फिर उन्हें चलाने वाले उनसे भी ज्यादा गरीब होते हैं, जिनके लिए ये योजनाएं बनाई जाती हैं। कुछ ऐसे लोग सब्जियों का ठेला लगाकर, साइकिल पर फेरी लगाकर रेडिमेड कपड़े-साड़ियां बेचकर, गली-मोहल्ले में छोटी सी दुकान खोलकर खाने-कमाने लायक कमा लेते थे, वे सभी रिलायंस फ्रेश, बिग बाजार, स्पेंसर जैसी रिटेल चेन व बड़े-बड़े मॉल खुलने से बेरोजगार हो गए। लाखों लोग आतिशबाजी कर अपने सुखों का ढिंढोरा पीटेंगे तो ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे ढोल बजाकर पैसे मांगते हैं और जैसे-तैसे दीवाली मनाने का जुगाड़ कर पाते हैं। जिनका स्वाभिमान इसकी भी इजाजत नहीं देता वे तो मन मसोसकर ही रह जाने को विवश होंगे। ऐसे में सही मायने में दीवाली मनाना तभी साथॅक हो सकेगा जब हम सभी अपने-अपने स्तर से ऐसे बेबस लोगों के चेहरे पर खुशियों की चमक लाने का अंजुरीभर प्रयास करें, ईश्वर ने कुछ दिया है तो उसको देने में संकोच कैसा। मां लक्षमी से भी प्राथॅना कि कभी तो उन अभागों के द्वार का भी रुख करो। कुबेरों के पास तो आप डेरा जमाए ही रहती हैं।
सबके जीवन में प्रसन्नता की ज्योति का निखार हो, इन्हीं मंगलकामनाओं के साथ.........

1 comment:

Udan Tashtari said...

दीपावली मंगलमय हो, बहुत शुभकामनायें.