जहां तक मैं समझ पाया हूं, पर्व-त्यौहार अप्राप्य को पाने का अवसर प्रदान करते हैं। इन विशेष अवसरों पर अपने इष्ट से अभीष्ट तथा सुख-समृद्धि का वरदान मांगते हैं। जहां तक होली की बात है, तो यह ऐसा पर्व है, जिसमें प्रकृति भी अपने विशेष रंग में रंगी नजर आती है। ऐसा लगता है, मानो प्रकृति पर वसंत का रंग छा गया हो। पेड़ों के पत्ते झड़ जाते हैं और नई कोंपलें नए जीवन का संदेश देती प्रतीत होती हैं। माघ शुक्ल पंचमी (वसंत पंचमी) के बाद दिन अनुदिन गर्म होने लगते हैं और फागुन पूर्णिमा के आते-आते सूर्य के ताप का साथ पाकर जब फगुनहट बयार चलती है तो पूरे वातावरण में ही मस्ती घोल देती है।
जब बाहर की प्रकृति बौरा जाए तो मनुष्य के अंदर की प्रकृति कहां स्थिर रह पाती है। आम तौर पर साल के तीन सौ चौंसठ दिन मितभाषी रहने वाला भी होली के दिन वाचाल हो जाता है। बड़े-बड़े मुद्दों पर जो अपनी राय देने में हमेशा कृपणता बरतते हैं, वे भी होली पर ऐसी टिप्पणी कर बैठते हैं कि लोग दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर हो जाते हैं। तभी तो कहते हैं--भर फागुन बुढ़वा देवर लागे....।
फिर हमारी संस्कृति तो और भी निराली है। हम जो भी अच्छा-बुरा करते हैं, उसके पीछे अपना हाथ तो कभी नहीं मानते, बस परंपरा का निर्वहन करते हैं। तभी तो होली के गीतों में राधा-कृष्ण, राम-सीता, शंकर-पार्वती ही हमारे आदर्श हैं। त्रेता में देवर लक्ष्मण ने भाभी सीता को रंग डाला, तो द्वापर में भगवान कृष्ण ने गोपियों पर इस तरह रंग उड़ेला कि घर के लोग पहचान ही न पाएं। हम तो बस उनके अनुयायी हैं और उनकी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। भोले बाबा की बूटी भंग की ठंडाई का असर ज्यों-ज्यों होता है, होली का रंग चोखा होता जाता है।
अप्राप्य को पाने की इच्छा का ही असर है कि होली गीतों में पति-पत्नी की होली कहीं ठहर नहीं पाती। हर पद में हर छंद में देवर-भाभी की ठिठोली ही होली का आदर्श हुआ करती है। इसके बाद साली का नंबर आता है। साली के संग होली खेलने का आनंद तो अवर्णनीय है। एक मित्र से बात हुई, उनकी दो-दो सालियां हैं और होली पर उनका रंगमर्दन करने के लिए वे आज ही ससुराल पहुंच गए थे। अपनी साली का आकर्षण तो यह हुआ, लेकिन भैया की साली के संग होली का आनंद तो सोने पर सुहागा के समान होता है। अब बेचारे भैया होली के इस रंगीले त्यौहार में पत्नी और साली दोनों से वंचित होकर अपने भाग्य को कोसें तो कोसते रहें।
तो आप सबको होली की रंगभरी मंगलकामनाएं। ईश्वर से प्रार्थना करें कि इस जन्म में जिनके साली और देवर नहीं हैं, उन्हें अगले जन्म में यह सुख अवश्य प्राप्त हो। कुछ अतिशयोक्ति हो तो इतना ही कहना चाहूंगा-बुरा न मानो होली है।
8 comments:
अपनी तो कोई साली ही नही है.
होलीमय आलेख. धन्यवाद
होली की शुभकामनांए.
होली की शुभकामनाए.nice
लगाते हो जो मुझे हरा रंग
मुझे लगता है
बेहतर होता
कि, तुमने लगाये होते
कुछ हरे पौधे
और जलाये न होते
बड़े पेड़ होली में।
देखकर तुम्हारे हाथों में रंग लाल
मुझे खून का आभास होता है
और खून की होली तो
कातिल ही खेलते हैं मेरे यार
केसरी रंग भी डाल गया है
कोई मुझ पर
इसे देख सोचता हूँ मैं
कि किस धागे से सिलूँ
अपना तिरंगा
कि कोई उसकी
हरी और केसरी पट्टियाँ उधाड़कर
अलग अलग झँडियाँ बना न सके
उछालकर कीचड़,
कर सकते हो गंदे कपड़े मेरे
पर तब भी मेरी कलम
इंद्रधनुषी रंगों से रचेगी
विश्व आकाश पर सतरंगी सपने
नीले पीले ये सुर्ख से सुर्ख रंग, ये अबीर
सब छूट जाते हैं, झट से
सो रंगना ही है मुझे, तो
उस रंग से रंगो
जो छुटाये से बढ़े
कहाँ छिपा रखी है
नेह की पिचकारी और प्यार का रंग?
डालना ही है तो डालो
कुछ छींटे ही सही
पर प्यार के प्यार से
इस बार होली में।
-विवेक रंजन श्रीवास्तव 'विनम्र'
ांअपको होली की हार्दिक शुभकामनाए
बढिया है भाई, कुछ देश जहान की बात हुई। अच्छा लगा, वरना तो इतना गंभीर वातावरण है कि क्या कहें।
होली की हार्दिक शुभकामनाए
badhiya post
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